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अनेकान्त-56/3-4
थे। गुप्तचरों की कार्यकुशलता पर राज्य की उन्नति ही नहीं वरन् अस्तित्व भी अविलम्बित था। गुप्तचर प्रमुख रूप से शत्रु-पक्ष के सैन्य-बल और युद्ध-संबंधी तैयारियों के संबंध में सूचनाएँ लाते थे। राज्य-व्वस्था तथा प्रजा-व्यवहार की जानकारी के लिए भी गुप्तचरों का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता था। गुप्तचरों की नियुक्ति
प्राचीन भारतीय महाकाव्यों और दृश्यकाव्यों में गुप्तचर की नियुक्ति-सम्बन्धी विवरणों से ज्ञात होता है कि राजा द्वारा ली गयी परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर ही गुप्तचर, राजकीय सेवा में नियुक्त किये जाते थे, जिन्हें 'उपधाविशुद्ध' गुप्तचर कहा जाता था। सामान्यतः गुप्तचरों को नियमित रूप से राज्य-सेवा में नियुक्त किया जाता था, जिन्हें स्थायी वेतन प्राप्त होता था किन्तु कभी-कभी आवश्यकतानुसार अस्थायी, अल्पकालीन अथवा आकस्मिक रूप से भी उनकी नियक्ति की जाती थी और उनके कार्य के बदले राजकोष से पारिश्रमिक दिया जाता था। गुप्तचरों की नियुक्ति राजा का पुनीत कर्त्तव्य माना गया है किन्तु वह किस वर्ण अथवा वर्ग-विशेष के व्यक्तियों को गुप्तचर बनाए इस सम्बन्ध में कोई स्पष्ट प्रमाण प्राप्त नहीं होते हैं। इतनी जानकारी अवश्य मिलती है कि राजा जिस व्यक्ति को गुप्तचर पद पर नियुक्ति करे वह कुलीन परिवार से सम्बन्ध रखता हो तथा उसके सम्बन्ध में समाज में कोई अपवाद न फैला हो।। वेणीसंहार में यह विवरण अवश्य मिलता है कि राज्य द्वारा धीवर, शिकारी, ग्वाले, साधु आदि सभी प्रकार के लोगों से गुप्तचर. का कार्य लिया जाता था।" किरातार्जुनीय महाकाव्य में वर्णन आया है कि राज्य से निष्कासित युधिष्ठिर द्वारा दुर्योधन की राज्य-व्यवस्था व प्रजा-व्यवहार की जानकारी प्राप्त करने हेतु एक किरात को ब्रह्मचारी के वेष में भेजकर उसके माध्यम से राज्य की जानकारी प्राप्त की गयी थी। बुद्धचरित महाकाव्य में गुप्तचर-व्यवस्था की गतिशीलता का वर्णन करते हुए बताया गया है कि गुप्तचरों को विविध कार्यो में नियुक्त करने का अधिकार पुरोहित तथा मंत्री के कार्यक्षेत्र में आता था।"