Book Title: Anekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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58
दृष्ट्यादिदशधर्माणा निष्ठानिर्वहण मता ।
तमाचरति यस. स्यान्नैष्ठिकः साधकोत्सुकः ।।
- धर्मसंग्रहश्रावकाचार, नैष्ठिक श्रावक
अनेकान्त-56/3-4
10. यावज्जीवं ये व्रता सन्ति साक्षीकृत्योपात्तास्ते सदा पालनीया ।
इत्थ प्रोक्ता सन्ति ये निष्ठितात्मा प्रख्यायन्ते नैष्ठिका व्रतोधोतन श्रावकाचार, 260 श्रावकास्ते । । 11. सागाधरधर्मामृत, 3/4, 12. व्रतोद्योतन श्रावकाचार 245-250, 13 सागारधर्मामृत, 2/54 14. दसणवय सामाइय पोसह सच्चित्त राइभक्ते य ।
रभपरिग्गह अणुमण उद्दिट्ठदेसविरदे दे ।। - कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 69
15 सागारधर्मामृत 3 / 2-3, अमितगतिश्रावकाचार 72, संस्कृत भावसंग्रह, 98
16. श्रावकपदानि देवैरेकादश देशितानि येषु खलु । स्वगुणा पूर्वगुणै सह संतिष्ठन्ते क्रमविवृद्धा ।। -रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 136
17. यशास्तिलकचम्पूगत उपासकाध्ययन, 821
18 पुरुषार्थानुशासनगत श्रावकाचार, 6/94
19 रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 137, 20 पुरुषार्थनुशासनगत श्रावकाचार, 6/95-96
21. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 138, 22 कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गाथा 330
23 किञ्च रजन्या गमन न कर्तव्य दीर्घेऽध्वनि ।
दृष्टिचरे शुद्धे स्वल्पे न निषिद्धा मार्गे गतिः ।। अश्वाधारोहण मार्गे न कार्य व्रतधारिणा । ईर्यासमितिसशुद्धि कुत सयात्तत्र कर्मणि । ।
- लाटीसंहिता, सर्ग 4 श्लोक 223-224
24 रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 139, 25 महापुराण 10 / 158,
26 यशस्तिलकचम्पूगत उपासकाध्ययन, 853
27 रत्नकरण्ड श्रावकाचार 139, चारित्रसारगत श्रावकाचार संस्कृत भावसग्रह, 92
28. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, 140
29 कार्तिकेयानुप्रेक्षा गाथा 57-58 एवं 72-77 तथा वसुनन्दिश्रावकाचार, 295
30 रत्नकरण्ड श्रावकाचार 141, 31. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, 379
32 वही, 381, 33 रत्नकरण्ड श्रावकचार, 142
34 वसुनन्दिश्रावकाचार, 296, 35 वही, 314-18
36. महापुराण 10 / 159, यशस्तिलकचम्पूगत उपासकाध्ययन, 833 तथा सागारधर्मामृत 3 / 21
37. अमितगति श्रावकाचार 72, संस्कृत भावसंग्रह-98

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