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अनेकान्त-56/3-4
"बुद्धिमान पुरुष को अपथ्य औषधि के समान राज्य का त्याग कर देना चाहिये। उसे राज्य के विषय में विरक्त हो, भोगोपभोग का त्याग कर देना चाहिये। अन्त समय में तो समस्त आडम्बर का त्याग कर सल्लेखना धारण करनी चाहिये।"29 राजा चन्द्र गुप्त इसके जीते जागते उदाहरण हैं। उनके पश्चात् होने वालो राजाओं ने राज्य त्याग कर समाधिमरण व्रत ग्रहण नहीं किया। अतः राजा को या शासक पद पर आसीन व्यक्ति को गुणवान, शिक्षक, बुद्धिमान, विद्वान एवं न्यायप्रिय होना चाहिये। धर्मबुद्धि का धारक होना चाहिये। प्रजा के पालन में तत्पर होना चाहिये। ___ इस प्रकार आदिपुराण में उत्कृष्ट राजनीतिक सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है। आदिपुराण की राजनीति में जहाँ एक ओर सर्वोत्कृष्ट शासक के गुण देखने को मिलते हैं वहीं स्वयं राजनीति भी लोकोदय, राष्ट्रीयता, सर्वोदय अहिंसा एवं पक्षपात रहित भावना से ओतप्रोत है।
संदर्भ-ग्रन्थ - आदिपुराण, प्रथम भाग, आचार्य जिनसेन, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली-1993
आदिपुराण, द्वितीय भाग, आचार्य जिनसेन, भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली-1993 - दिवाकर अभिनन्दन ग्रथ, जैनोदय पुस्तक प्रकाशन समिति, रतलाम, वी नि. 2473 1 तृतीय पर्व, श्लोक 206, आदिपुराण। 2 वही 3/211 3. वही 3/199 “इतिकर्तव्यता नतिमीवास्तदार्यकान। नाभिर्नभेयमित्युक्त्वा व्याजहारः पुनः स
तान। 4. वही 38/258, पार्थिवान प्रवतान् यूय न्यायैः पालयतः प्रजा । अन्यायेषु प्रवृताश्चेद् वृतिलोपो ध्रुवं
हि व । 5 वही 38261, “प्रजासु वर्तितव्य भो भवद्भिायवर्मना ।" 6. वही 38/959. "न्यायश्च द्वितयो दुष्टनिग्रहः शिष्टपालनम" 7 वही 38/262, “पालयेद्य इमधर्म सधर्मविजयी भवेत्। क्षमा जयेद् विजितात्मा हि क्षत्रियो
न्यायजीविक" 8 वही 38/263, “इहैव स्याद् यशोलाभो भूलाभश्च महोदयः। अमुन्नाभ्युदयावाप्तिः क्रमात्
त्रैलोक्यनिर्जय"