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अनेकान्त-56/3-4
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__ बौद्ध कला का अस्तित्व सारे भारत और सारे एशिया में व्याप्त हुआ, किन्तु जैन कला भारत की सीमा के अन्दर ही बनी रही। बौद्धकला को अशोक, कनिष्क आदि साम्राज्यों का संरक्षण प्राप्त था, जबकि जैनकला किसी भी युग में राज्याश्रित नही रही। जैन कला सदा ही धर्म की पगडंडियो पर चलती रही। लोकप्रियता प्राप्त न कर धर्मपरक होने के कारण उसमें पवित्रता और नीरसता व्याप्त है। परन्तु उच्च आदर्शों के प्रति उसकी आस्था बनी रही
जेसलमेर, पाटन, खभात, पूना, बीकानेर, बडौदा, आदि स्थानों के महत्वपूर्ण स्थानो में महत्वपूर्ण जैनाश्रित कला के नमूने विद्यमान हैं। परन्तु प्रश्न यह उठता है कि देखरेख के अभाव में ये चिरस्थायी संरक्षण पा सकेगी या नही।
-रीडर एवं अध्यक्षा-चित्रकला विभाग दिगम्बर जैन महाविद्यालय, बड़ौत
"स्याद्वादो वर्तते यस्मिन् पक्षपातो न विद्यते।
नास्त्यन्यपीडन किंचित जनधर्म स उच्यते।।" अर्थात् “जिसमे सर्वत्र स्याद्वाद का वर्णन-अनेकान्त का व्यवहार होता है, पक्षपात नहीं पाया जाता और न दूसरों के पीडन का-हिंसा का ही कुछ विधान है उसे जैनधर्म कहते हैं।