Book Title: Anekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 188
________________ अनेकान्त-56/3-4 समीप व्रतों को ग्रहण करके भिक्षा वृत्ति से आहार ग्रहण करते हुए तपस्या करता है तथा वस्त्रखण्ड को धारण करता है । 19 वर्तमान में ग्यारहवीं प्रतिमाधारी के दो भेद स्वीकृत हैं- क्षुल्लक और ऐलक । ये दो भेद कब से हुये यह विचारणीय है। आचार्य कुन्दकुन्द, समन्तभद्राचार्य, स्वामी कार्तिकेय, सोमदेव, चामुण्डराय, अमितगति आदि ने ग्यारहवीं प्रतिमा के दो भेद नहीं किये हैं । पश्चाद्वर्ती वसुनन्दि, पं. आशाधर, मेधावी एवं गुणभूषण आदि ने दो भेद मानकर ग्यारहवीं प्रतिमा का विवेचन किया है । सकलकीर्ति ने ग्यारहवीं प्रतिमाधारी को क्षुल्लक कहकर उसे सद्धातु का कमण्डलु और छोटा पात्र रखने का विधान किया है। उन्होंने उसे मुहूर्त प्रमाण निद्रा लेने का कथन किया है। लाटी संहिता और पुरुषार्थानुशासन क्षुल्लक को सहप्राप्त प्रासु द्रव्य से पूजन करने का भी विधान किया गया है । वर्तमान में क्षुल्लक लंगोट के साथ एक खण्डवस्त्र भी धारण करता है, जबकि ऐलक मात्र एक लंगोट ही धारण करता है । क्षुल्लक और ऐलक मे अन्तर इस प्रकार देखा जा सकता है 1 क्षुल्लक 1. क्षुल्लक ग्यारहवीं प्रतिमाधारी प्रथमोत्कृष्ट श्रावक हैं । 53 2. ग्यारहवीं प्रतिमा के सर्वप्रथम दो भेद वसुनन्दि श्रावकाचार में मिलते हैं। पर प्रथमोत्कृष्ट श्रावक का क्षुल्लक नाम सत्तरहवीं शदी के राजमल्ल ने लाटी संहिता में सर्वप्रथम दिया है। 3. वसुनन्दि ने प्रथम उत्कृष्ट श्रावक को एक वस्त्रधारक कहा है । 4. क्षुल्लक शब्द का अर्थ स्वल्प या ऐलक ऐलक ग्यारहवीं प्रतिमाधारी चरमोत्कृष्ट श्रावक है 1 द्वितीयोत्कृष्ट या चरमोत्कृष्ट श्रावक का ऐलक नाम राजमल्ल लिखित लाटी संहिता में सर्वप्रथम दिया गया है । द्वितीय उत्कृष्ट श्रावक को मात्र कॉपीन धारक कहा है। ऐलक कदाचित् अचेलक का

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