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अनेकान्त-56/3-4
तुम अनादि हो, तुम अनंत हो, तुम दीवाली, तुम बसंत हो । मोक्ष - मार्ग दर्शाने वाले, जीवन सफल बनाने वाले । । 3 ।। श्वास- श्वास में भजनावलियाँ, वीतराग भावों की कलियाँ । खिल जाती हैं तब बयार से, मिलता आतम सुख विचार से ।14।। नंगे पैरों शुद्ध भाव से, वन्दन करते सभी चाव से । पुण्यवान पाते हैं दर्शन, छुटें नरक पशु गति से बंधन ।। 5 ।। स्वाध्याय से ज्ञान बढ़ाते, निज पर की पहचान बनाते । ध्यान लगाते, कर्म नशाते, वे सब जन ही शिव पद पाते ।।6।। अरिहंतों के शुभ वन्दन से सिद्ध प्रभू के गुण-गायन से । ऊंचे शिखरों से अनुप्राणित, क्षेत्रपाल से हो सम्मानित ।। 7 ।। हर युग में चौबिस तीर्थकर, ध्यान - लीन हो इस पर्वत पर । सब-के-सब वे मोक्ष पधारे, अगणित मुनि-गण पार उतारे ।। 8 ।। काल- दोष से वर्तमान में, आत्मलीन कैवल्य ज्ञान में । चौबीसी के बीस जिनेश्वर, मुक्त हुए सम्मेद शिखर पर ।।9।। इन्द्रदेव के द्वारा चिन्हित, पद-छापों से टोंकें शोभित । तपस्थली है धर्म ध्यान की, सरिता बहती आत्म-ज्ञान की ।।10।। तेरा संबल जब मिलता है, हर मुरझाया मन खिलता है। टोंक-टोंक तीर्थकर गाथा, श्रद्धा से झुक जाता माथा ।। 1।।। प्रथम टोंक गणधर स्वामी की, व्याख्या कर दी जिनवाणी की । धर्म-भाव संचार हो गया, चिन्तन से उद्धार हो गया । । 12 ।। ज्ञानकूट जिन- ज्ञान अपरिमित, कुन्थनाथ तीर्थंकर पूजित । श्रद्धा भक्ति विवेक पवन में, मिले शान्ति हर बार नमन में ।।13।। मित्रकूट नमिनाथ शरण में, गुंजित वातावरण भजन में । नाटक कूट जहां जन जाते, अरहनाथ जी पूजे जाते ।।14।। संबल कूट सदा अभिनंदित, मल्लिनाथ जिनवर हैं वंदित । मोक्ष गए श्रेयांस जिनेश्वर, संकुल कूट सदा से मनहर ।। 15 ।। सुप्रभ कूट से शिव पद पाकर, वंदित पुष्पदंत जी जिनवर । मोहन कूट पद्मप्रभु शोभित, होता जन-जन का मन मोहित ।। 16 ।।