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अध्यात्म एवं चिकित्सा - विज्ञान की जुगलबंदी
- प्राचार्य निहालचंद जैन
अध्यात्म, प्रार्थना, ध्यान और सामायिक का रोगी के ऊपर क्या प्रभाव पड़ता है, इस पर पश्चिमी जगत विशेषकर इग्लैंड में बहुत अनुसंधान और विवेचनाएँ चल रहीं है। भारत जिस आध्यात्मिक आस्था से हजारो वर्षो से जुड़ा है आज विश्व का ध्यान उन रहस्यो की ओर जाना शुरू हो गया है। ब्रिटेन में इस समय एक बात पर विशेष बहस चल रही है भारत में प्रचलित अध्यात्म, आस्था और प्रार्थना जैसे भाव - 1 ब- विज्ञान से रोगी के स्वस्थ होने की रफ्तार बढ़ जाती है इस पर ब्रिटेन में भी सफल परीक्षण / प्रयोग हुए है, आखिर इसके पीछे रहस्य क्या है?
डॉ. लारी डोसे ने अपने एक सस्मरण मे लिखा कि उन्होने प्रार्थना की एक अजीव चिकित्सा पद्धति का अनुभव किया। उन्होने अपने प्रशिक्षण समय का जीवन्त वृतान्त लिखा, जब वे टेक्सास के पाईलैण्ड मेमोरियल अस्पताल मे थे । उन्होने एक कैसर मरीज को अंतिम अवस्था में देखा और उसको यही सलाह दी कि वह उपचार से विराम ले ले, क्योंकि उपलब्ध चिकित्सा से उसे कोई लाभ नही हो रहा था।
उसके विस्तर पर बैठा हुआ कोई न कोई मित्र, उसके स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रार्थना किया करता था। एक वर्ष के पश्चात् जबकि डॉ. लारी वह अस्पताल छोड़ चुके थे, एक पत्र मिला कि क्या आप अपने पुराने मरीज़ से मिलना चाहेगें। 1980 में जब डॉ. लारी मुख्य कार्यकारी अधिकारी बना, उन्होने यह निष्कर्ष दिया कि प्रार्थना से विभिन्न प्रकार के महत्त्वपूर्ण शारीरिक परिवर्तन घटित होते हैं।
शरीर में होने वाली 'व्याधि' का मुख्य कारण हमारी मानसिक सोच है, जो 'आधि' के नाम से जानी जाती है। हमारी सोच ही मनोविकारो/मनोरोगों का