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सरह गाय को राखें चौंर। छठो गुणठाणौं है और॥ 39॥ आगम शास्त्र पुराणदि का। प्रायश्चित अन्यथा तिका। ते सब रचिकै मूढनि माहि। फैलायो मिथ्यात अथाह।। 40।। श्रवण” संघ तैं वाहरि सोय। नागकुमार सेन अवलोय। समय मिथ्याती रुद्र सुभाव। काष्ट संघ थाप्यो अघ भाव।। 41॥ वरष सात सै त्रेपन गए।-------------------- । नंदी तट वर गाम मंझार। काष्ट संघ जाणों अघकार॥ 42॥ नंदी तट वर गाम मंझार। नामकुमार सेन श्रुतधार। दर्शनभ्रष्ट भयो संन्यास। भंजन करिकै अघ को वास॥ 43।।
काष्ठा संघ -
नव सत त्रेपन वर्ष जु गए। मथुरा नगरी में वरणए। रामसेन नामा इक जती। संघ निपिच्छ रच्यो अघमती ।। 44॥ जो सम्यक्त्वप्रकति मिथ्यात। सो तातें थाप्यो इह भांति। यह जिनबिंब जिनेश्वर गेह। मेरो है तेरो नहिं एह॥ 45॥ यह ही है गुरु मेरो सही। जा ढिंग मैंने दीक्षा गही अपना गुरु कुल कौ अभिमान। धरै करै पर को अपमान॥ 46॥
निपिच्छ संघ -
सीमंधर जिन तैं शुचि ज्ञान। लहिकै पद्मनन्दि गुणवान। जो नाही संबोधन करै। तो मुनि सुमग किसैं अनुसरै।। 47॥ भूतबली मुनि पुष्प जु दंत। दक्षिण उत्तर में निरभ्रंत। जो उपदेश तत्त्व को कियो। सो सत्यारथ अनुक्रम लियो।। 48॥ पुष्कलपुर दक्षिण दिसि लसै। वीरचंद मुनि तैलै बसे। बरस अठारा सै कों गये। भिल्ल संघ थापै गो नये॥ 49॥ सो करि कै निज गछ विथार। पडिकोणों किरिया अधिकार। भिन्न प्ररूपि हणे गोपंथ। जिनवर को धारे गो ग्रंथ॥ 50॥ ता पीछे मिथ्यामत भेव। ना बैगो भाखी गणदेव।