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है कि अध्यात्म को चिकित्सा विज्ञान के साथ जोड़कर मानवीय सेवा के इस उज्जवल पक्ष को धर्म से जोड़कर देखा जाए। आलेख का समापन अपने निजी संस्मरणात्मक घटना से करना चाहूँगा जो अध्यात्म और चिकित्सा की जुगलबंदी को पुष्ट करता है !
अनेकान्त-56/1-2
20 फरवरी 02 में, मेरी बेटी का Engagement हो गया। जयपुर में वर - पक्ष, का सुझाव आया कि मार्च 02 मे ही शादी सम्पन्न हो जाए क्योकि लड़के की मां, जो स्तन कैंसर के आपरेशन के बाद सीरियस थी, शायद इस खुशी के क्षणों को न देख सकें।
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मैंने लड़के की माँ को शादी होने के पूर्व ही एक लम्बा विश्वासपूर्ण पत्र लिखा कि ईश्वर में विश्वास रखें और भेजे जा रहे मन्त्र का जाप करे । आपको 'आत्म-विश्वास' की दवा का सेवन करना है। मन्त्र की अचूक शक्ति का प्रयोग करें। सामायिक में जो भी हिन्दी/संस्कृत स्तोत्र याद हों उन्हे प्रतिदिन करना शुरू करें। महावीर जयन्ती 2002 को शादी सम्पन्न हुई और आज एक वर्ष के पश्चात् अपने बेटे-बहू के साथ जीवन के अवशेष आयु कर्मो के निषेकों के साथ व शान्ति / सुख से जीवन जी रही हैं।
अध्यात्म की शाक्ति जीवन मे एक अपरिमेय शाति की सुधा का जो रसास्वादन कराती है, वह अमूल्य विरासत है। जरूरत है एक पक्के विश्वास और आस्था को अपने भीतर संजोकर रखने की।
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जवाहर वार्ड बीना (म. प्र. ) (07580)-224044
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