________________
पाँच दशक पूर्व आचार्य सूरसागरजी की अध्यक्षता में सम्पन्न त्यागी - व्रती सम्मेलन : निर्णयों की सार्थकता
(मेरी जीवनगाथा भाग-2 से उद्धृत )
संग्रहकर्ता - डॉ. राजेन्द्रकुमार बंसल
पूज्य गणेशप्रसादजी वर्णी बीसवी शताब्दि के जैन जगत् के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है। उनके बहुमुखी प्रभाव साहित्य साधना, निष्पृही जीवन, समाज सुधार एव जैन शिक्षा के प्रचार-प्रसार से जैन जगत् ही नही अपितु राष्ट्र भी गौरवान्वित हुआ है। अजैन कुलोत्पन्न 'गणेश' जैन दर्शन के समयसार स्वरूप शुद्धात्मा का साधक बनकर सभी का मार्गदर्शक बन गया। आपने जैन समाज की श्रावक/त्यागी सस्थाओं के सुधार और उन्नति मे महत्वपूर्ण योगदान दिया। जैन साहित्य मे 'मेरी जीवन गाथा' वर्णीजी का महत्वपूर्ण अवदान है। यह उनके कार्यकलापों एव अनुभवो के साथ ही जैन समाज की घटनाओ का प्रामाणिक दिशाबोधक दस्तावेज है।
मेरी जीवनगाथा - भाग 2 के अनुसार आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व संवत् 2007 (ई. सन् 1950 ) में सेठ छदामीलालजी ने फिरोजाबाद मे विशाल महोत्सव आयोजित किया था। इसमें आचार्य सूरसागरजी महाराज, वर्णीजी, अन्य अनेक त्यागी - व्रती, श्रीमत सेठ, विद्वान, समाज सुधारक, राजनीतिज्ञ आदि सम्मिलित हुए थे। इसका उद्घाटन उ. प्र. के मुख्यमंत्री प. गोविन्द बल्लभ पत ने किया था। इस उत्सव में अन्य कार्यक्रमो के अलावा माघ शुक्ला 11 स. 2007 को आचार्य श्री सूरसागरजी महाराज की
अध्यक्षता मे विशाल
वर्णीजी एव अन्य
·
त्यागी - व्रती सम्मेलन हुआ जिसमे सघस्थ साधु- व्रती त्यागियों ने भाग लिया, जिनकी मख्या 70-75 थी।
इसमे त्यागियों से