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13. रमणी के रूप। 14. वसुदेवहिण्डी। 15. द जेनीसिस एण्ड ग्रोथ ऑफ प्राकृत जैन नैरॅटिव लिटरेचर,
डा. जैन की कतिपय कृतियो का विवरण यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा
स्याद्वादमंजरी
स्याद्वादमंजरी विभिन्न विश्वविद्यालयों में जैनदर्शन के पाठ्यक्रमों में निर्धारित लोकप्रिय पाठ्यग्रन्थ है। इसके हिन्दी, अंग्रेजी और गुजराती भाषाओ मे अनेक सस्करण प्रकाशित हुए हैं। 1932 में डा. जैन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में एम.ए. (दर्शनशास्त्र) में अध्ययन कर रहे थे, उसी समय स्याद्वादमंजरी पर कार्य करने की उन्हें आवश्यकता प्रतीत हुई, जिसे उन्हीं के शब्दों में देखे---"जिस समय में हिन्दू युनिवर्सिटी में एम.ए. में आदरणीय प्रो. फणिभूषण अधिकारी से स्याद्वादमंजरी पढ़ता था, उस समय मुझे उनके साथ दर्शन शास्त्र के अनेक विषयों पर चर्चा करने का अवसर प्राप्त हुआ था। उसी समय से मेरी इच्छा थी कि मैं स्याद्वादमंजरी पर कुछ लिखकर जैनदर्शन तथा राष्ट्रभाषा की सेवा करूं। संयोगवश पिछले वर्ष (1934 ई.) मेरा बम्बई में आना हुआ और मैंने रामचन्द्र जैनशास्त्रमाला के व्यवस्थापक श्रीयुत मणीलाल रेवाशंकर जगजीवन झवेरी की स्वीकृतिपूर्वक स्याद्वादमंजरी का काम आरंभ कर दिया।" (स्याद्वादमंजरी की भूमिका पृ. 5)
आचार्य हेमचन्द्र ने सिद्धसेन की द्वात्रिंशिकाओं का अनुकरण करते हुए तीर्थकर महावीर की स्तुति में अन्यव्यवच्छेदिका और अयोगव्यवच्छेदिका नाम की दो द्वात्रिंशिकाएँ रची थीं। अन्ययोगव्यवच्छेदिका में अन्य दर्शनों में दूषणो का प्रदर्शन किया गया है तथा अयोगव्यवच्छेदिका में स्वपक्ष की सिद्धि की गई है। अन्योगव्यवच्छेदिका की मल्लिषेणसूरि की संस्कृत टीका का नाम स्याद्वादमंजरी है। स्याद्वादमंजरी के इसी संस्करण में हिन्दी अनुवाद के साथ मूलरूप में अयोगव्यवच्छेदिका भी समायोजित की गई है।
ग्रन्थ का यह संस्करण अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। इसका संशोधन रायचन्द्र शास्त्रमाला की एक प्राचीन और शुद्ध हस्तलिखित प्रति के आधार से