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अनेकान्त-56/12
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यहाँ यह विशेष अवधेय है कि जिस प्रकार शक्ति की अपेक्षा निरपेक्ष तन्तु वेमा आदि मे पट का कारणपना कथचित् माना जाता है, उसी प्रकार निरपेक्ष नयो में भी शक्ति की अपेक्षा सम्यग्ज्ञान का कारणपना माना जा सकता है। इसी बात को सर्वार्थसिद्धि मे निम्नलिखित शब्दो में स्वीकार किया गया है
'अथ तत्त्वादिषु पटादिकार्य शक्त्यपेक्षया अस्तीत्युच्यते। नयेष्वपि निरपेक्षेषु वद्ध्यभिधानरूपेषु कारणवशात् सम्यग्दर्शनहेतुत्वविपरिणतिसद्भावात् शक्रत्यात्मनास्तित्वमिति साम्यमेवोपन्यासस्य।' । क्या नय सात ही हैं?
नयों का विवेचन कही शब्द, अर्थ एव ज्ञान रूप मे त्रिविध हुआ तो कही पञ्चविध, सप्तविध या नवविध भी। वस्तुत: जितने भी वचनमार्ग है, उतने ही नय के भेद हैं। द्रव्य की अनन्त शक्तियाँ है। अत: उनके कथन करने वाले अनन्त नय हो सकते है। श्लोकवार्तिक के अनुसार सक्षेप मे नय दो-द्रव्यार्थिक एव पर्यायार्थिक, विस्तार से तत्त्वार्थसूत्र में प्रतिपादित नैगमादि सात तथा अतिविस्तार से सख्यात विग्रह वाले होते है। निरपेक्ष नय ग्रहण से उत्पन्न भ्रान्तियाँ और उनके तत्त्वार्थसूत्र एवं उसकी टीकाओं में प्रदत्त समाधान भ्रान्ति 1. शुभप्रवृत्ति, परिणाम एवं उपयोग से आस्रव और बन्ध ही होता है। समाधान- व्रत प्रवृत्ति रूप भी होते है तथा निवृत्ति रूप भी होते है। अहिसा
आदि व्रतो को एकदेश प्रवृत्ति रूप होने की वजह से आचार्य उमास्वामी ने जहाँ उन्हें आस्रव के कारणों मे रखा है, वहीं सयम, ब्रह्मचर्य एवं तप को दस धर्मो मे ग्रहण कर उन्हे सवर का कारण
भी माना है तथा तप को तो निर्जरा का हेतु भी कहा है। भ्रान्ति 2. निमित्त कुछ नही करता है तथा निमित्त के अभाव में भी कार्योत्पत्ति
हो सकती है। निमित्त तो स्वतः मिल जाता है। समाधान- कर्मो का फलदान द्रव्य. क्षेत्रादि के निमित्त होने पर ही होता है.
उसके बिना नही होता है। यदि किसी कर्म का उदयकाल हो तो