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अनेकान्त-56/1-2
परमात्मा बनने के लिये आत्मा का गणस्थान आरोहण आवश्यक है। साधना द्वारा आत्मा की शक्ति उत्पन्न नही करनी है अपितु अपने अन्दर निहित शक्ति को ही अभिव्यक्त करना है।
सन्दर्भ
। परमात्मप्रकाश, डा ए एन. उपाध्ये रामचन्द जैन शास्त्रमाला भूमिका, पृ 106 2. जैन धर्म. प कैलाशचन्द शास्त्री भारतीय दि. जैन सघ पृ. 111 3 परमात्पप्रकाश, पृ 22 दोहा 15 4 वही, पृष्ठ 89 दोहा 2 3 5 सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग: उमास्वामी 1/1 1 पञ्चास्तिकायसग्रह श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्य, हिन्दी अनुवादक श्री मगनलाल जैन. दि जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट, सोनगढ, पचम सस्करण सन् 1959, गाथा 128, 129, 130 2 वही, पृ 240, गाथा 162 1. जैन दर्शन, डा. महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य, पृ 244 2. पञ्चास्तिकायसग्रह आचार्य कुन्दकुन्द हिन्दी अनुवाद श्री मगनलाल सेठी. पृ. 163, गाथा ] (06 3 द्रव्यसग्रह नेमिचन्द सिद्धान्तदेत स डा दरवारीलाल कोठिया, पृ. 45. 46 4 जैन दर्शन. डा महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य वर्णी ग्रन्थमाला पृ 244 । प्रवचनसार आचार्य कुन्दकुन्द टीकाकार व शीतलप्रसादजी पृ 54 2 वही, पृ 61 3. जैन दर्शन डा. महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य पृ. 238 से 242 तक 4 वही, पृ. 242 5. वही पृ. 242 6 परमात्मप्रकाश द्वि अध्याय, दोहा 189 से 195 तक । परमात्म प्रकाश. अध्याय । दोहा 75 2 गोम्मटसारजीवकाड, आचार्य नेमिचन्द्र
अलका. 35 इमामवाडा
मुजफ्फरनगर