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अनेकान्त-56/1-2
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प्रकार की बुद्धि है जिसकी वह पर्यायास्तिक है।
उक्त नैगमादि सात नयों में नैगम, संग्रह और व्यवहार ये तीन द्रव्यार्थिक नय के भेद है तथा ऋजुसूत्र आदि शेष चार पर्यायार्थिक नय के भेद हैं। नैगम नय यद्यपि द्रव्य और पर्याय दोनों को मुख्य-गौण भाव से ग्रहण करता है फिर भी वह इनको उपचार से ग्रहण करता है, अत: वह द्रव्यार्थिक नय का भेद है। संग्रह नय तो द्रव्यार्थिक है ही। व्यवहार नय के विषय में ऊर्ध्वता सामान्य से भेद नही किया जाता है, इसलिए इसे भी द्रव्यार्थिक नय ही माना जाता है। आगे के चार नय पर्यायार्थिक है। ऋजुसूत्र नय तो पर्याय विशेष को ग्रहण करता ही है, शेष तीन भी पर्याय को ही विषय बनाते हैं। अतः इन्हे पर्यायार्थिक माना गया है।
उक्त सभी नय यद्यपि अपने-अपने विषय को ही ग्रहण करते हैं किन्तु मुख्य-गौण भाव से परस्पर सापेक्ष रहते हैं। सातों नयों का संक्षिप्त स्वरूप
श्री श्रुतसागर सूरि के अनुसार नैगमादि सातो नयो को स्वरूप इस प्रकार है(1) नैगम- जो एक द्रव्य या पर्याय को ग्रहण नही करता इस विकल्प
रूप हो वह निगम है और निगम का भाव नैगम है। सकल्प मात्र
ग्राही नैगम नय कहलाता है। (2) संग्रह- अभेद रूप वस्तु के ग्रहण करने को सग्रह नय कहते है। (3) व्यवहार- सग्रह नय से गृहीत अर्थ को भेद रूप से ग्रहण करना
व्यवहार नय है। (4) ऋजुसूत्र- ऋजु का अर्थ सरल है। जो ऋजु अर्थात् सरल को
सूचित करता है अर्थात् स्वीकार करता है, वह ऋजुसूत्र नय है। (5) शब्द- शब्द से, व्याकरण से, प्रकृति प्रत्यय द्वार से सिद्ध, शब्द नय
(6) समाभिरूढ- परस्पर अभिरूढ समाभिरूढ नय है।