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अनेकान्त-56/1-2
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कारणसाकल्यवाद का खण्डन भी किया है।
(ड.) न्यायकुमुदचन्द्र मे जिनसेन (आदिपुराण के कर्ता) के शिष्य गुणभद्रकृत आत्मानुशासन का 'अन्धादय महानन्धो... ( श्लोक 350 ) उद्धृत किया गया है। आत्मानुशासन गुणभद्र की प्रौढ़कालीन रचना मानी जाती है। गुणभद्र ने ईसवी 898 में, अर्थात् आदिपुराण की रचना के 60 वर्ष बाद, उत्तरपुराण पूर्ण किया था । अतः यह संभव नही हो सकता कि ईसवी 9 शती के अन्त मे या दशवी के प्रारंभ में रचे गये ग्रन्थ का श्लोक न्यायकुमुदचन्द्र मे आ जाये।
उपर्युक्त कारणों से ईसवीय 783 में लिखे गये हरिवंशपुराण में या ईसवीय 838 मे रचे गये आदिपुराण मे न्यायकुमुदचन्द्र के कर्ता प्रभाचन्द्र (ई. 950 -1020) का स्मरण कैसे किया जा सकता है? अर्थात् नही किया जा सकता। अतएव ध्यातव्य है कि हरिवंशपुराण या आदिपुराण मे जिस चन्द्रोदय नामक रचना या जिस प्रभाचन्द्र नामक कवि का स्मरण किया गया है। वे वर्तमान में उपलब्ध एव प्रसिद्ध ग्रन्थ न्यायकुमुदचन्द्र एव प्रमेयकमलमार्तण्ड आदि के रचयिता प्रभाचन्द्र नही है, अपितु उनके नामराशि कोई दूसरे ही ग्रन्थकार है, जिनकी चन्द्रोदय नामक कोई प्रसिद्ध एव महत्त्वपूर्ण रचना थी जो अभी तक अप्राप्त है।
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