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अनेकान्त-56/1-2
विद्यानन्द-समन्तभद्रगुणतो नित्यं मनोनन्दनम्। (4) न्यायकुमुदचन्द्र की प्रशास्ति मे स्वय प्रभाचन्द्र ने लिखा है
भव्याम्भोजदिवाकरो गुणनिधियोऽभून्जगद्भूषणः।
सिद्धान्तादिसमस्तशास्त्रजलधि श्रीपद्मनन्दिप्रभुः।। (5) श्रवणवेलगोला के शिलालेख संख्या (64) मे अविद्धकर्ण पद्मनन्दि
सैद्धान्तिक के शिष्य रूप में किसी प्रभाचन्द्र का उल्लेख है जो कुलभूषण नामक विद्वान् के गुरुभाई (सधर्मा) बताये गये हैअविद्धकादिकपद्मनन्दिसैद्धान्तिकाख्योऽजनि यस्य लोके। कौमारदेवव्रतिताप्रसिद्धिर्जीयात्तु सो ज्ञाननिधिस्स धीरः॥15॥ तच्छिष्यः कुलभूषणाख्ययतिपश्चारित्रवारान्निधिः सिद्धान्ताम्बुधिपारगो नतविनेपस्तत्सधर्मो महान्। शब्दाम्भोरुहभास्करः प्रथिततर्कग्रन्थकार: प्रभाचन्द्राख्यो मुनिराजपण्डितवरः श्री कुण्डकुण्डान्वयः ॥16॥
जैन शिलालेखसग्रहः, पृष्ठ 26/2 (6) शिमोगा जिले के नगर ताल्लुके के 46वी संख्या के शिलालेख मे एक
पद्य निम्नप्रकार पाया जाता हैसुखि...न्यायकुमुदचन्द्रोदयकृते नमः
शाकटायनकृत्सूत्रन्यासकā व्रतीन्दवे॥ इस पद्य में दो बातें प्रमुख हैं। एक तो ग्रन्थ का नाम न्यायकुमुदचन्द्रोदय दिया है और उसके कर्ता को नमन किया गया है। दूसरे इसी न्यायकुमुदचन्द्रोदय के कर्ता को शाकटायनसूत्रन्यास का रचयिता बताया गया है। - भ्रान्ति के कारण उपर्युक्त चन्द्रोदय, न्यायकुमुदचन्द्रोदय न्यायकुमुदचन्द्र प्रभाचन्द्रोदयोज्ज्वल आदि नाम और पद है जिन्हें एक ही ग्रन्थ के विभिन्न नामान्तर मान लिया जाता है। यहाँ तक कि न्यायकुमुदचन्द्र का नाम न्यायकुमुदचन्द्रोदय भी चल पड़ता है। वस्तुतः प्रमेयकमलमार्तण्ड के रचयिता प्रभाचन्द्र के ग्रन्थ का वास्तविक नाम न्यायकुमुदचन्द्र ही है, चन्द्रोदय नही।