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क्या ‘चन्द्रोदय' और 'न्यायकुमुदचन्द्र' का रचयिता एक है?
-डॉ. कमलेशकुमार जैन, दिल्ली भारतीय विशेषकर जैन साहित्य के इतिहास में, एक ही नाम के कई व्यक्तियो की एक लम्बी परम्परा है। इन समान नाम वाले साहित्यकारों/लेखको का स्वतत्ररूप से कोई विशेष परिचय भी नहीं मिलता और जो कुछ परिचय प्राप्त होता है, वह इतना कम है कि उसके आधार पर उनकी समानता/असमानता का निर्णय करना भी कठिन है।।
प्राचीन काल से लेकर प्रायः मध्यकाल के प्रारभ तक भारतीय साहित्य और परम्परा मे सामान्यतः यह प्रवृत्ति देखी जाती है कि अमुक आचार्य या लेखक रचना करते समय अपना, अपने वंश का या गुरु-परम्परा आदि का परचिय नही देता। इसमे सभवतः आत्म-श्लाघा से बचना और 'आत्मनाम गुरोर्नाम नामातिकृपणस्य च...' आदि भावना ही प्रमुख कारण रही है।
इसी तरह का एक नाम 'प्रभाचन्द्र' का है। जैन साहित्य और पुरातत्त्व के अनुसार प्रभाचन्द्र नाम के अनेक व्यक्ति हुए हैं। इनके विषय में स्वतत्र रूप से विशेष परिचय न मिलने से व्यक्ति-भेद और काल-भेद होने पर भी उनके विषय मे संशय उत्पन्न हो जाते हैं(1) हरिवंशपुराण (रचना ई. 783) में जिनसेन ने किसी प्रभाचन्द्र नामक
विद्वान् का स्मरण किया है जो कुमारसेन के शिष्य थे। हरिवंश का अविकल पद्य इस प्रकार हैआकूपारं यशो लोके प्रभाचन्द्रोदयोज्वलम्। गुरोः कुमारसेनस्य विचख्यजितात्मकम्॥ प्रथम सर्ग, श्लोक 38 इस श्लोक के 'प्रभाचन्द्रोदयोज्ज्वलम्' पद में चन्द्रोदय शब्द आया है।