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अनेकान्त-56/1-2
पूर्वक पुरूषो की भाति ही धर्म का पालन करती थीं, बल्कि दान देने और धर्मायतनो का निर्माण कराने मे उनसे भी आगे ही थी। इतना ही नहीं वे स्वेच्छा से साध्वी भी हो सकती थी। उस काल मे आर्यिकाओं का संगठन भी बहुत ही व्यवस्थित रहा प्रतीत होता है। प्रथम शताब्दी में ही जैन गुरूओ ने सर्वप्रथम सरस्वती आन्दोलन उठाया जिसका उद्देश्य परम्परागत जैनश्रुत का संकलन कराना और जैनो में लिखित साहित्य की रचना का प्रारम्भ कराना था।
सन्दर्भ ग्रंथ सूची 1. भारतीय दर्शन डॉ राधाकृष्णन, 2. तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा-डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री द्वितीय खण्ड पृष्ठ 160, 3. तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा-डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री द्वितीय खण्ड पृष्ठ--. 4. आगम युग के प्रभावक आचार्य पृ 217 साध्वी पीयूष प्रभा 5 आगम युग के प्रभावक आचार्य पृ. 217 साध्वी पीयूष प्रभा, 6 तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा डॉ नेमिचन्द्र शास्त्री द्वितीय खण्ड पृष्ठ 46, 7 आगम युग के प्रभावक आचार्य पृ 216 साध्वी पीयूष प्रभा, 8 कमायपाहुडसुत्त गाथा 2, 9 तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री द्वितीय खण्ड पृष्ठ 30-31
रजनीश शुक्ल
JRF जैन विद्या एव प्राकृत विभाग सुखड़िया विश्वविद्यालय
उदयपुर-313001