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अनेकान्त-56/1-2
महत्वपूर्ण हैं। समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार, अष्टपाहुड (प्राभृत), दसभत्ति अथवा भत्ति संग्गहो (दस भक्ति अथवा भक्ति संग्रह) एवं वारस अणुवेक्खा (द्वादशानुप्रेक्षा) यह आचार्य कुन्दकुन्द विरचित ग्रंथ हैं। इन ग्रंथो का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है। समयसार- समयसार आर्या वृत (आर्या छन्द) में गुम्फित प्राकृत शौरसेनी भाषा का उत्तम कोटि का ग्रंथ माना गया है। टीकाकार आचार्य अमृतचंद्र के अभिमत से इस ग्रंथ की 439 गाथाएं हैं। यह ग्रथ 9 अधिकारो में विभक्त है। अधिकारों के नाम ये हैं-(1) जीवाजीवाधिकार, (2) कर्ताकर्माधिकार, (3) पुण्य-पाप अधिकार, (4) श्रावक अधिकार, (5) संवर अधिकार, (6) निर्जरा अधिकार, (7) बंध अधिकार, (8) मोक्ष अधिकार, (9) सर्व-विशुद्धजान
अधिकार। प्रवचनसार- यह ग्रंथ दर्शन प्रधान ग्रंथ है। इसकी शैली सरल और सुबोध है। इस ग्रंथ पर आचार्य अमृतचंद्र और जयसेन आचार्य की संस्कृत टीकाए है। आचार्य अमृतचंद्र की टीका के अनुसार कुल 275 गाथाएं है। आचार्य जयसेन की टीका के अनुसार 317 गाथाएं हैं। इस ग्रंथ में तीन प्रकरण है-प्रथम अधिकार में आत्मा और ज्ञान के संबंधों की चर्चा है। दूसरे अधिकार मे द्रव्य, गुण, पर्याय आदि ज्ञेय पदार्थों का विस्तृत वर्णन है तथा सप्तभंगी का सम्यक प्रतिपादन है और तृतीय अधिकार में चरित्र के स्वरूप का विवेचन बताया है। इस ग्रंथ में तीर्थकर के प्रवचन का सार संग्रह है, अतः इस ग्रंथ का प्रवचनसार नाम सार्थक है। तीन अधिकारो में परिसमाप्य यह ग्रंथ जैन तत्व की गहनता को समझने के लिए विशेष पठनीय है। इस ग्रथ का द्वितीय प्रकरण सबसे बड़ा है। वह 108 गाथाओं में संपन्न हुआ है। दिगम्बर परम्परा संबंधी मुनिचर्या का वर्णन मुख्यतः तृतीय अधिकार में है। सचेलकत्व निषेध, स्त्री मुक्ति-निषेध, केवली कवलाहार निषेध आदि विषय बिन्दु भी इस अधिकार मे वर्णित हुए हैं। पंचास्तिकाय- इस ग्रंथ में दो प्रकरण हैं। आचार्य अमृतचंद्र के अनुसार इस ग्रंथ की 173 गाथाएं और जयसेनाचार्य की टीका के अनुसार 181 गाथाए है। इस ग्रंथ में पांच अतिकायों का विवेचन होने के कारण ग्रंथ का नाम