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अनेकान्त-56/1-2
(3) सुत्त पाहुड- इसमें 27 गाथाएं हैं। इसमे आगम का महत्त्व समझाया गया है। ( 4 ) बोध पाहुड- इसमें कुल 62 गाथाएं है। इनमें आयतन, देव, तीर्थ, अर्हत और प्रव्रज्या आदि 11 विषयों का बोध दिया गया है।
( 5 ) भाव पाहुड- इसमें 163 गाथाए है। इनमें चित्त शुद्धि की महत्ता पर बल दिया गया है।
( 6 ) मोक्ख पाहुड- इसमें कुल 106 गाथाओं मे मोक्ष के स्वरूप का प्रतिपादन है। बहिरात्मा, अन्तरात्मा, परमात्मा; आत्मा की इन तीन अवस्थाओ का वर्णन भी इस पाहुड मे उपलब्ध है।
( 7 ) लिगं पाहुड- इसमें कुल 22 गाथाओ मे श्रमणलिंग और श्रमण धर्म का निरूपण है।
( 8 ) शील पाहुड- इसमें 40 गाथाएं हैं। इनमे शील की महत्ता का वर्णन है।
यह पाहुड साहित्य तात्त्विक दृष्टि से उपयोगी है। इसकी शैली सुबोध है। विषय का वर्णन संक्षिप्त है । प्राभृत साहित्य के रूप में आचार्य कुन्दकुन्द का यह साहित्य - जगत को विशिष्ट उपहार है। प्रथम छह पाहुडों पर आचार्य श्रुतसागरजी की संस्कृत टीका भी है।
भक्ति संग्रह
भक्ति संग्रह में आचार्य कुन्दकुन्द की आठ भक्तियां है। इनमें नाम इस प्रकार हैं- सिद्धभति, सुदभत्ति, चरितभत्ति, जोइभत्ति, आइरियभत्ति णिव्वाणभत्ति, पंचगुरूभत्ति, तित्थयरभत्ति ।
सिद्धभत्ति (सिद्ध भक्ति ) - इस भक्ति की 12 गाथाए हैं। सिद्धो के गुणो का वर्णन इस कृति में प्रस्तुत है। इस पर प्रभाचंद्राचार्य कृत संस्कृत टीका है। संस्कृत की सभी भक्तियां पूज्यपाद की और प्राकृत की भक्तिया कुन्दकुन्द की है। प्रभाचंद्राचार्य की टीका के अन्त में इस प्रकार का उल्लेख है।
सुदभत्ति ( श्रुत भक्ति ) - इसमें आचाराग, सूत्रकृतांग आदि 12 अगो का भेद-प्रभेद सहित वर्णन है तथा 14 पूर्वो की वस्तु संख्या तथा प्रत्येक वस्तु के प्राभृतों की संख्या भी इसमें है । इस कृति में कुल 11 गाथाएं हैं।