________________
इस कृति को देख कर मेरे संसार पक्षीय माताजी श्रीमती शांतिदेवी एवं अग्रजभ्राता श्री गुलाबचंद जी, सुजानमल जी सेठिया सह पारिवारिक सदस्यों को सात्विक गर्व और गौरव की अनुभूति हो रही है।
मन को कितना सुकून मिलता काश! मुझे प्रस्तुत कृति को करुणा के महास्त्रोत आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के चरणों में उपहृत करने का सौभाग्य मिलता, जिनकी उर्जस्वल प्रेरणा ने मुझे यत्किंचित कार्य करने के लिये प्रोत्साहित किया।
लेखन कार्य में शताधिक ग्रन्थों का उपयोग किया गया। अतः उन सभी लेखक-संपादक समूह के प्रति हार्दिक अहोभाव सदैव समर्पित रहेगा। सपरिशिष्ट पांच अध्यायों में समायोजित कृति में रही त्रुटियों को पाठकवर्ग क्षम्य कर अपने मौलिक सुझावों से अनुग्रहीत करें। अहोभावपूर्वक सादर प्रणति चार पंक्तियों के साथ
महात्मा गांधी और महाप्रज्ञ ने दिया उड़ने को अनंत आकाश, जन-जन के मन में प्रतिष्ठित किया अहिंसा के प्रति विश्वास । मेरे में कहां उस अनंत आकाश में उड़ने की ताकत? पर, मैंने इस विषय में किया है, छोटा-सा प्रयास।
डॉ. साध्वी सरलयशा एम.ए. गोल्ड मेडेलिस्ट,
(xx)