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भेद में गांधी और महाप्रज्ञ के अहिंसा संबंधी उन विचारों का विमर्श किया गया है जो वैशिष्ट्य से युक्त है। सर्वथा भेद प्रधान होने से स्वतंत्र शैली में वेष्टित हैं।
अभेद में समानधारा में गतिशील विचारों का समाकलन किया गया है। यद्यपि अभेद प्रधान विचारों की दिशा दोनों की स्वतंत्र है फिर भी उनमें साम्यता का समावेश है। उदाहरण के तौर पर साध्य-साधन की पवित्रता गांधी और महाप्रज्ञ दोनों को इष्ट थी। पवित्र लक्ष्य के लिए पवित्र साधन
और पवित्र पथ का वरण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। मनीषियों की अहिंसा निर्जीव नहीं सजीव रूप में व्यक्त हुई। हिंसा का सामना करने के लिए अहिंसा प्रचण्ड शक्ति के रूप में मान्य बनीं, ऐसी शक्ति जिसके सम्मुख जगत की समस्त पशुता और शस्त्रबल अकिंचित् कर ठहरता है।
समन्वय की दिशा में मनीषियों के उन मौलिक विचारों का समावेश है जो एक दूसरे से नत्थि होकर वर्तमान की वैश्विक समस्याओं का अहिंसक नीति से समाधान निकालने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। समन्वय की शैली पर उजागर होने वाली भावी संभावनाओं का आकलन एवं निष्पक्ष प्रस्तति के संकल्प का अनशीलन किया गया है। संपर्ण पंचम अध्याय में इस तथ्य को उजागर करने का प्रयत्न किया गया है कि गांधी और महाप्रज्ञ के अहिंसा विषयक चिंतन में अद्भुत समानता, मौलिकता और सामयिकता का समावेश है, अपेक्षा है व्यापक प्रयोगभूमि पर प्रतिष्ठापन की। प्रेरणा-प्रोत्साहन प्रस्तुत कृति (पी.एच-डी. शोध प्रबंध) निष्ठ है। इसके आदि प्रेरणा स्रोत बनें भारत ज्योति युगप्रधान आचार्य श्री महाप्रज्ञ। आचार्य महाप्रज्ञ योग्यता के निर्मापक थे। आपश्री की अवितथ प्रेरणा और प्रोत्साहन ने मुझमें शोध जैसे गुरुत्तर कार्य से जुड़ने का आत्मविश्वास पैदा किया। आचार्य महाप्रज्ञ की प्राणवान् प्रेरणा ने मेरी संकल्पना को आकार दिया। प्रसंग राजगढ़ में पूज्य गुरूदेव के अल्पकालीन प्रवास का था। प्रातराश के पश्चात् मैं आचार्य महाप्रज्ञ की उपासना में बैठी थी। सहसा गुरूदेव ने मुख्य नियोजिका साध्वी श्री विश्रुत विभा जी को इंगित करते हुए मेरे लिए पूछा-'ये क्या अध्ययन कर रही है। मैंने सहज भाव से निवेदन किया कि व्यवस्थित रूप से तो कछ भी न
5 भी नहीं चल रहा है। गुरूदेव से आशीर्वाद मिला-तुम पी.एच.डी. कर सकती हो। मैंने अहोभाव से गुरू इंगित को प्रसन्नतापूर्वक शिरोधार्य किया। डॉ. दयानंद भार्गव जी से विषय चयन एवं डॉ. बच्छराज जी दूगड़, विभागाध्यक्ष अहिंसा एवं शांतिशोध, जैन विश्व भारती संस्थान के निर्देशन एवं अनन्य सहयोग से शोधकार्य सम्पन्न किया। उस सेतुभूत सहयोग के लिए कृतज्ञता ज्ञापन शब्द भी बौना रह जाता है, मैं सदैव आभारी रहूँगी। प्रणत हूँ प्रेरणा और पौरुष के आस्थान श्रद्धेय महामना आचार्य श्री महाश्रमणजी के प्रति जिनकी प्राणवान् करुणा ने मेरे कार्य को कृतार्थ बनाया।
नतमस्तक हूँ, अहर्निश सारस्वत समुपासना में तल्लीन ममता की मूरत आदरणीय महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभा जी के प्रति, जिन्होंने बहुत पहले ही मेरे पी-एच.डी. कार्य की मंगलकामना प्रदान कर मेरे कतिकार्य को समचित परिवेश दिया। डॉ. साध्वी श्री शुभप्रभा जी के फाईनल प्रफ रीडिंग में उदारमना समय नियोजन के लिए आभारी हूँ। केशर फरेंस इन्स्टीट्यूट, गंगाशहर की डायरेक्टर डॉ. सुधा सोनी के आत्मीय सहयोग ने कार्य को गतिशील बनाया, उसके लिए साधुवाद ।
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