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२० आनन्द प्रवचन : सातवाँ भाग होते हैं । इसलिए किसी भी व्यक्ति को संत के बड़प्पन और छोटेपन का विचार किये बिना उनके द्वारा प्रदत्त वीतराग-वाणी को चाहे वह कम मात्रा में हो या अधिक मात्रा में, ग्रहण करने का प्रयत्न करना चाहिए ।
नन्दन मणिहार ने भगवान के अलावा अन्य संतों को छोटा मानकर उनकी अवज्ञा की इस भावना के कारण प्रथम तो उसके शरीर में रोगों ने घर किया और अन्त समय में आसक्ति की भावना बनी रहने से उसे अपनी ही बावड़ी में मेंढक के रूप में जन्म लेना पड़ा । पर फिर भी उसके कृत पुण्यों का संचय था और उनके प्रभाव से फिर उसके जीवन ने पलटा खाया ।
वह इस प्रकार कि जब वह अपनी ही बावड़ी में मेंढक के रूप में समय व्यतीत कर रहा था, एक बार कुछ व्यक्ति बावड़ी पर आकर नन्दन मणिहार के दानादि गुणों की सराहना करने लगे । मेंढक संज्ञी था और एक ही जन्म का बीच में अन्तराल था। अतः लोगों के द्वारा बोले गये शब्द उसे परिचित लगे और पुण्योदय से उसे जाति-स्मरण ज्ञान हो गया। फलस्वरूप उसे अपना नन्दन मणिहार वाला जीवन करकंकणवत् दिखाई देने लगा। ऐसा होते ही वह चिंतन में लीन हो गया और पश्चात्ताप करने लगा कि 'मैंने किस प्रकार बड़े और छोटे का मन में भेद-भाव लाकर संतों की संगति त्यागी थी, जिसके परिणामस्वरूप अपनी त्याग-तपस्या को छोड़कर आज मनुष्यगति से तिर्यंचगति में आ पड़ा हूँ।' - घोर पश्चात्ताप करते हुए नन्दन मणिहार के जीव मेंढक ने सोचा-"हे आत्मन् ! जो कर्म किये थे वे तो भुगतने ही पड़ेंगे पर फिर भी कोई हर्ज नहीं, अब भी चेत जाऊँ तो ठीक है।"
यह विचारकर उसने श्रावक के ग्यारह व्रत पुनः धारण किये क्योंकि बारहवाँ व्रत दान देना तो तिर्यंचगति में सम्भव नहीं था। उसने बेला करना भी प्रारम्भ कर दिया और आत्म-चिन्तन में लीन हो गया।
सौभाग्य से भगवान महावीर पुनः उस शहर में पधारे और मेंढक को बावड़ी के ऊपर लोगों की बातों से यह ज्ञात हुआ कि राजा श्रेणिक एवं सभी सेठ-साहूकार उनके दर्शनार्थ जा रहे हैं। मेंढक के हृदय में भी अपार श्रद्धा उमड़ी और उसकी इच्छा महावीर भगवान के दर्शन करने की हुई । फलस्वरूप वह बावड़ी से बाहर निकला और धीरे-धीरे उसी मार्ग पर चल दिया जिस पर होकर अनेक दर्शनार्थी जा रहे थे । मेंढक का हृदय आनन्द विभोर एवं श्रद्धा से विगलित हो रहा था कि आज भगवान के दर्शन कर सकूँगा। किन्तु कर्म बली होते हैं, वे किसी जीव की भावनाओं को नहीं देखते । मेंढक के अशुभ कर्मों का भी उदय हुआ और वह भगवान के दर्शन नहीं कर सका।
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