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भगवती-३३/१/२/१०१९
२७ और बादरअनन्तरोपपन्नक पृथ्वीकायिक । इसी प्रकार दो-दो भेद वनस्पतिकायिक पर्यन्त समझना।
भगवन् ! अनन्तरोपपन्नकसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव के कितनी कर्मप्रकृतियाँ हैं ? गौतम ! आठ यथा-ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकर्म । भगवन् ! अनन्तरोपपन्नकबादरपृथ्वीकायिक के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही गई हैं ? गौतम ! आठ, यथा-ज्ञानावरणीय यावत अन्तरायकर्म । इसी प्रकार अनन्तरोपपत्रकबादरवनस्पतिकायिक पर्यन्त जानना । भगवन् ! अनन्तरोपपन्नकसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधते हैं ? गौतम ! आयुकर्म को छोड़ कर शेष सात । इसी प्रकार यावत् अनन्तरोपपत्रकबादरवनस्पतिकायिक पर्यन्त जानना ।
भगवन् ! अनन्तरोपपन्नकसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ वेदते हैं ? गौतम ! वे (पूर्वोक्त) चौदह कर्मप्रकृतियाँ वेदते हैं, यथा-पूर्वोक्त प्रकार से ज्ञानावरणीय यावत् पुरुषवेदबध्य (पुरुषवेदावरण) वेदते हैं । इसी प्रकार यावत् अनन्तरोपपन्नकबादरवनस्पतिकायिकपर्यन्त कहना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।'
| शतक-३३/१ उद्देशक-३ [१०२०] भगवन् ! परम्परोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पांच प्रकार के पृथ्वीकायिक इत्यादि और औधिक उद्देशक के अनुसार इनके चारचार भेद कहने चाहिए । भगवन् ! परम्परोपपन्नकअपर्याप्तसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही गई हैं ? गौतम ! से औधिक उद्देशक अनुसार यावत् चौदह कर्मप्रकृतियाँ वेदते हैं; तक पूर्ववत् कहना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।'
| शतक-३३/१ उद्देशक-४ से ११ [१०२१] अनन्तरावगाढ़ एकेन्द्रिय, अनन्तरोपपन्नक उद्देशक समान कहना । परम्परावगाढ़ एकेन्द्रिय, परम्परोपपन्नक उद्देशक समान जानना । अनन्तराहारक एकेन्द्रिय, अनन्तरोपपन्नक उद्देशक अनुसार जानना । परम्पराहारक एकेन्द्रिय, परम्परोपपन्नक उद्देशक अनुसार समझना ।
___ अनन्तरपर्याप्तक एकेन्द्रिय, अनन्तरोपपन्नक समान जानना । परम्परपर्याप्तक एकेन्द्रिय परम्परोपपन्नक समान जानना । चरम एकेन्द्रिय परम्परोपपन्नक अनुसार जानना । इसी प्रकार अचरम एकेन्द्रिय भी जान लेना । ये सभी ग्यारह उद्देशक हुए । 'हे भगवन् ! इसी प्रकार है ।'
| शतक-३३ शतकशतक-२ | [१०२२] भगवन् ! कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पांच प्रकार के यथा-पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक । भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, यथा-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक
और बादरपृथ्वीकायिक | भगवन् ! कृष्णलेश्यी सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! औधिक उद्देशक अनुसार यहाँ भी प्रत्येक एकेन्द्रिय के चार-चार भेद कहना ।
भगवन् ! कृष्णलेश्यी अपर्याप्तक सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव को कितनी कर्मप्रकृतियाँ हैं ? गौतम ! औधिक उद्देशक अनुसार कर्मप्रकृतियाँ कहनी चाहिए । उसी प्रकार वे बांधत हैं। उसी प्रकार वे वेदते हैं । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।'
भगवन् ! अनन्तरोपपन्नककृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम !