________________
२६८
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
[५१] एक बार राजगृह नगर में अमारि-की घोषणा हई । गाथापति की पत्नी रेवती ने, जो मांस में लोलुप एवं आसक्त थी, अपने पीहर के नौकरों को बुलाया और उनसे कहातुम मेरे पीहर के गोकुलों में से प्रतिदिन दो-दो बछड़े मारकर मुझे ला दिया करो । पीहर के नौकरों ने गाथापति की पत्नी रेवती के कथन को 'जैसी आज्ञा' कहकर विनयपूर्वक स्वीकार किया तथा वे उसके पीहर के गोकुलों में से हर रोज सवेरे दो बछड़े लाने लगे । गाथापति की पत्नी रेवती बछड़ों के मांस के शूलक-सलाखों पर सेके हुए टुकड़ों आदि का तथा मदिरा का लोलुप भाव से सेवन करती हुई रहने लगी ।
[५२] श्रमणोपासक महाशतक को विविध प्रकार के व्रतों, नियमों द्वारा आत्मभावित होते हुए चौदह वर्ष व्यतीत हो गए । आनन्द आदि की तरह उसने भी ज्येष्ठ पुत्र को अपनी जगह स्थापित किया-पारिवारिक एवं सामाजिक उत्तदायित्व बड़े पुत्र को सौंपा तथा स्वयं पोषधशाला में धर्माराधना में निरत रहने लगा । एक दिन गाथापति की पत्नी रेवती शराब के नशे में उन्मत्त, लड़खड़ाती हुई, बाल बिखेरे, बार-बार अपना उत्तरीय-फेंकती हुई, पोषधशाला में जहां श्रमणोपासक महाशतक था, आई । बार-बार मोह तथा उन्माद जनक, कामोद्दीपक कटाक्ष आदि हाव भाव प्रदर्शित करती हुई श्रमणोपासक महाशतक से बोली-धर्म, पुण्य, स्वर्ग तथा मोक्ष की कामना, इच्छा एवं उत्कंठा रखनेवाले श्रमणोपासक महाशतक ! तुम मेरे साथ मनुष्य-जीवन के विपुल विषय-सुख नहीं भोगते, देवानुप्रिय ! तुम धर्म, पुण्य, स्वर्ग तथा मोक्ष से क्या पाओगे
श्रमणोपासक महाशतक ने अपनी पत्नी रेवती की इस बात को कोई दर नहीं दिया और न उस पर ध्यान ही दिया । वह मौन भाव से धर्माराधना में लगा रहा । उसकी पत्नी रेवती ने दूसरी बार तीसरी बार फिर वैसा कहा । पर वह उसी प्रकार अपनी पत्नी रेवती के कथन को आदर न देता हुआ, उस पर ध्यान न देता हुआ धर्म-ध्यान में निरत रहा । यों श्रमणोपासक महाशतक द्वारा आदर न दिए जाने पर, ध्यान न दिए जाने पर उसकी पत्नी रेवती, जिस दिशा से आई थी उसी दिशा की ओर लौट गई।
[५३] श्रमणोपासक महाशतक ने पहली उपासकप्रतिमा स्वीकार की । यों पहली से लेकर क्रमशः ग्यारहवीं तक सभी प्रतिमाओं की शास्त्रोक्त विधि से आराधना की । उग्र तपश्चरण से श्रमणोपासक के शरीर में इतनी कृशता-आ गई कि नाड़ियां दीखने लगीं । एक दिन अर्द्ध रात्रि के समय धर्म-जागरण-करते हुए आनन्द की तरह श्रमणोपासक महाशतक के मन में विचार उत्पन्न हुआ-उग्र तपश्चरण द्वारा मेरा शरीर अत्यन्त कृश हो गया है, आदि । उसने अन्तिम मारणान्तिक संलेखना स्वीकार की, खान-पान का परित्याग किया-अनशन स्वीकार किया, मृत्यु की कामना न करता हुआ, वह अराधना में लीन हो गया ।
तत्पश्चात् श्रमणोपासक महाशतक को शुभ अध्यवसाय, के कारण अवधिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से अवधिज्ञान उत्पन्न हो गया । फलतः वह पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण दिशा में एक-एक हजार योजन तक का लवण समुद्र का क्षेत्र, उत्तर दिशा में हिमवान् वर्षधर पर्वत तक क्षेत्र तथा अधोलोक में प्रथम नारकभूमि रत्नप्रभा में चौरासी हजार वर्ष की स्थिति वाले लोलुपाच्युतनामक नरक तक जानने देखने लगा।
[५४] तत्पश्चात् एक दिन महाशतक गाथापति की पत्नी रेवती शराब के नशे में उन्मत्त बार-बार अपना उत्तरीय फेंकती हुई पोषधशाला में जहां श्रमणोपासक महाशतक था,