Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 268
________________ उपासकदशा- ८/४८ २६७ अध्ययन - ८ 'महाशतक' [४८] आर्य सुधर्मा ने कहा- जम्बू ! उस काल - उस समय - राजगृह नगर था । शील चैत्य था । श्रेणिक राजा था । राजगृह में महाशतक गाथापति था । वह समृद्धिशाली था, वैभव आदि में आनन्द की तरह था । केवल इतना अन्तर था, उसकी आठ करोड़ कांस्यपरिमित स्वर्ण मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में खजाने में रखी थीं, आठ करोड़ कांस्य - परिमित स्वर्ण मुद्राएं व्यापार में लगी थीं, आठ करोड़ कांस्य - परिमित स्वर्ण मुद्राएं घर के वैभव में लगी थीं । उसके आठ ब्रज - गोकुल थे । प्रत्येक गोकुल में दस-दस हजार गायें थीं । महाशतक के रेवती आदि तेरह रूपवती पत्नियां थीं । अहीनप्रतिपूर्ण यावत् सुन्दर थी । महाशतक की पत्नी रेवती के पास अपने पीहर से प्राप्त आठ करोड़ स्वर्ण मुद्राएं तथा दस-दस हजार गायों के आठ गोकुल व्यक्तिगत सम्पत्ति के रूप में थे । बाकी बारह पनियों के पास उनके पीहर से प्राप्त एक-एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं तथा दस-दस हजार गायों का एक-एक गोकुल व्यक्तिगत सम्पत्ति के रूप में था । [४९] उस समय भगवान् महावीर का राजगृह में पदार्पण हुआ । परिषद् जुड़ी । महाशतक आनन्द की तरह भगवान् की सेवा में गया । उसने श्रावक-धर्म स्वीकार किया । केवल इतना अन्तर था, महाशतक ने परिग्रह के रूप में आठ-आठ करोड़ कांस्य - परिमित स्वर्ण मुद्राएं निधान आदि में रखने की तथा गोकुल रखने की मर्यादा की । रेवती आदि तेरह पत्नियों के सिवाय अवशेष मैथुन सेवन का परित्याग किया । एक विशेष अभिग्रह लियामैं प्रतिदिन लेन-देन में दो द्रोण-परिमाण कांस्य - परिमित स्वर्ण मुद्राओं की सीमा रखूंगा । तब महाशतक, जो जीव, अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त कर चुका था, श्रमणोपासक हो गया । धार्मिक जीवन जीने लगा । श्रमण भगवान् महावीर अन्य जनपदों में विहार कर गए । [५० ] एक दिन आधीरात के समय गाथापति महाशतक की पत्नी रेवती के मन में, जब वह अपने पारिवारिक विषयों की चिन्ता में जग रही थी, यों विचार उठा- मैं इन अपनी बारह, सौतों के विधन के कारण अपने पति श्रमणोपासक महाशतक के साथ मनुष्य जीवन के विपुल विषय - सुख भोग नहीं पा रही हूं । अतः मेरे लिए यही अच्छा है कि मैं इन बारह सौतों की अग्नि-प्रयोग, शस्त्र प्रयोग या विष प्रयोग द्वारा जान ले लूं । इससे इनकी एक-एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं और एक-एक गोकुल मुझे सहज ही प्राप्त हो जायगा । मैं महाशतक के साथ मनुष्य जीवन के विपुल विषय-सुख भोगती रहूंगी । यों विचार कर वह अपनी बारह सौतों को मारने के लिए अनुकूल अवसर, सूनापन एवं एकान्त की शोध में रहने लगी । एक दिन गाथापति की पत्नी रेवती ने अनुकूल पाकर अपनी बारह सौतों में से छह को शस्त्र प्रयोग द्वारा और छह को विष प्रयोग द्वारा मार डाला । यों अपनी बारह सौतों को मार कर उनकी पीहर से प्राप्त एक-एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं तथा एक-एक गोकुल स्वयं प्राप्त कर लिया और वह श्रमणोपासक महाशतक के साथ विपुल भोग भोगती हुई रहने लगी । गाथापति की पत्नी रेवती मांस भक्षण में लोलुप, आसक्त, लुब्ध तथा तत्पर रहती । वह लोहे की सलाख पर सेके हुए, घी आदि में तले हुए तथा आग पर भूने हुए बहुत प्रकार के मांस एवं सुरा, मधु, मेरक, मद्य, सीधु व प्रसन्न नामक मदिराओं का आस्वादन करती, मजा लेती, छक कर सेवन करती ।

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