Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 272
________________ उपासकदशा- १०/५८ २७१ राजा था । श्रावस्ती नगरी में लेइया पिता नामक धनाढ्य एवं दीप्त - गाथापति निवास करता था । उसकी चार करोड़ स्वर्ण मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में खजाने में रखी थीं, चार करोड़ स्वर्ण मुद्राएं व्यापार में लगी थीं तथा चार करोड़ स्वर्ण मुद्राएं घर के वैभव-साधन-सामग्री में लगी थीं । उसके चार गोकुल थे । प्रत्येक गोकुल में दस-दस हजार गायें थीं । उसकी पत्नी का नाम फाल्गुनी था । भगवान् महावीर श्रावस्ती में पधारे । समवसरण हुआ । आनन्द की तरह लेइया पिता ने श्रावक-धर्म स्वीकार किया । कामदेव की तरह उसने अपने ज्येष्ठ पुत्र को पारिवारिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्त्व सौंपा । भगवान् महावीर के पास अंगीकृत धर्मशिक्षा के अनुरूप स्वंय पोषधशाला में उपासना निरत रहने लगा । इतना ही अन्तर रहा-उसे उपासना में कोई उपसर्ग नहीं हुआ, पूर्वोक्त रूप में उसने ग्यारह श्रावक - प्रतिमाओं की निर्विध्न आराधना की । उसका जीवन क्रम कामदेव की तरह समझना चाहिए । देव - त्याग कर वह सौधर्म - देवलोक में अरुणकील विमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ । उसकी आयुस्थिति चार पल्योपम की है । महाविदेह क्षेत्र में वह सिद्ध-मुक्त होगा । अध्ययन - १० का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण [ ५९ ] दसों ही श्रमणोपासकों को पन्द्रहवें वर्ष में पारिवारिक, सामाजिक उत्तरदायित्व से मुक्त हो कर धर्म-साधना में निरत होने का विचार हुआ । दसों ही ने बीस वर्ष तक श्रावकधर्म का पालन किया । जम्बू ! सिद्धिप्राप्त भगवान् महावीर ने सातवें अंग उपासकदशा के दसवें अध्ययन का यह अर्थ - प्रतिपादित किया । [६०] सातवें अंग उपासकदशा में एक श्रुत-स्कन्ध है । दस अध्ययन हैं । उनमें एक सरीखा स्वर- है, इसका दस दिनों में उपदेश किया जाता है । दो दिनों में समुद्देश और अनुज्ञा दी जाती है । इसी प्रकार अंग का समुद्देश और अनुमति समझना चाहिए । [ ६१] प्रस्तुत सूत्र में वर्णित उपासक निम्नांकित नगरों में हुए आनन्द वाणिज्यग्राम में, कामदेव चम्पा में, चुलनीपिता वाराणसी में, सुरादेव वाराणसी में, चुल्लशतक आलभिका में, कुंडकौलिक काम्पिल्यपुर में जानना । तथा [६२] संकडालपुत्र पोलासपुर में, महाशतक राजगृह में, नन्दिनीपिता श्रावस्ती में, लेइया पिता श्रावस्ती में हुआ ' [ ६३ ] श्रमणोपासकों की भार्याओं के नाम निम्नांकित थे - आनन्द की शिवनन्दा, कामदेव की भद्रा, चुलनीपिता की श्यामा, सुरादेव की धन्या, चुल्लशतक की बहुला, कुंडकौलिक की पूषा, सकडालपुत्र की अग्निमित्रा, महाशतक की रेवती आदि तेरह नन्दिनीपिता की अश्विनी और लेइया पिता की फाल्गुनी । [ ६४ ] श्रमणोपासकों के जीवन की विशेष घटनाएं निम्नांकित थी - आनन्द को अवधिज्ञान विस्तार के सम्बन्ध में गौतम स्वामी का संशय, भगवान् महावीर द्वारा समाधान । कामदेव को पिशाच आदि के रूप में देवोपसर्ग, श्रमणोपासक की अन्त तक दृढता । चुलनीपिता को देव द्वारा मातृवध की धमकी से व्रत भंग और प्रायश्चित्त । सुरादेव को देव द्वारा सोलह भयंकर रोग उत्पन्न कर देने की धमकी से व्रत भंग और प्रायश्चित्त । चुल्लशतक को देव द्वारा स्वर्ण मुद्राएं आदि सम्पत्ति बिखेर देने की धमकी से व्रत भंग और प्रायश्चित्त । कुंडकौलिक को देव द्वारा उत्तरीय एवं अंगूठी उठा कर गोशालक मत की प्रशंसा, कुंडकौलिक की दृढता,

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