Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 273
________________ २७२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद नियतिवाद का खण्डन, देव का निरुत्तर होना । सकडालपुत्र को व्रतशील पत्नी अग्निमित्रा द्वारा भग्न-व्रत पति को पुनः धर्मस्थित करना । महाशतक को व्रत-हीन खती का उपसर्ग, कामोद्दीपक व्यवहार, महाशतक की अविचलता । नन्दिनीपिता को व्रताराधना में कोई उपसर्ग नहीं हुआ। और लेइयापिता को व्रताराधना में कोई उपसर्ग नहीं हुआ । [६५] श्रमणोपासक देह त्याग कर निम्नांकित विमानों में उत्पन्न हुए आनन्द अरुण में, कामदेव अरुणाभ में, चुलनीपिता अरुणप्रभ में, सुरादेव अरुणकान्त में, चुल्लशतक अरुणश्रेष्ठ में, कुंडकौलिक अरुणध्वज में, सकडालपुत्र अरुणभूत में, महाशतक अरुणावतंस में, नन्दिनीपिता अरुणगव में और लेइयापिता अरुणकील में उत्पन्न हुए । [६६] श्रमणोपासकों के गोधन की संख्या निम्नांकित रूप में थी-आनन्द की ४० हजार, कामदेव की ६० हजार, चुलनीपिता की ८० हजार, सुरादेव की ६० हजार, चुल्लशतक की ६० हजार, कुंडकौलिक की ६० हजार, सकडालपुत्र की १० हजार, महाशतक की ८० हजार, नन्दिनीपिता की ४० हजार और लेइयापिता की ४० हार थी । [६७] श्रमणोपासकों की सम्पत्ति निम्नांकित स्वर्ण-मुद्राओं में थी-आनन्द की १२ करोड़, कामदेव की १८ करोड़, चुलनीपिता की २४ करोड़, सुरादेव की १८ करोड़, चुलशतक की १८ करोड़, कुंडकौलिक की १८ करोड़, सकडालपुत्र की ३ करोड़, महाशतक की कांस्यपरिमित २४ करोड, नन्दिनीपिता की १२ करोड़ और लेइयापिता की १२ करोड़ थी ।। [६८] आनन्द आदि श्रमणोपासकों ने निम्नांकित २१ बातों में मर्यादा की थी-शरीर पोंछने का तौलिया, दतौन, केश एवं देह-शुद्धि के लिए फल-प्रयोग, मालिश के तैल, उबटन, स्नान के लिए पानी, पहनने के वस्त्र, विलेपन, पुष्प, आभूषण, धूप, पेय । तथा [६९] भक्ष्य-मिठाई, ओदन, सूप, घृत, शाक, व्यंजन, पीने का पानी, मुखवास । [७०] इन दस श्रमणोपासकों में आनन्द तथा महाशतक को अवधि-ज्ञान प्राप्त हुआ, आनंद का अवधिज्ञान इस प्रकार है-पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण दिशा में लवण समुद्र में पांचपांच सौ योजन तक, उत्तर दिशा में चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत तक, ऊर्ध्व-दिशा में सौधर्म देवलोक तक, अधौदिशा में प्रथम नारक भूमि रत्नप्रभा में लोलुपाच्युत नामक स्थान तक । [७१] प्रत्येक श्रमणोपासक ने ११-११ प्रतिमाएं स्वीकार की थीं, जो निम्नांकित हैंदर्शन-प्रतिमा, व्रत-प्रतिमा, सामायिक-प्रतिमा, पोषध-प्रतिमा, कायोत्सर्ग-प्रतिमा, ब्रह्मचर्यप्रतिमा, सचित्ताहार-वर्जन-प्रतिमा, स्वयं आरम्भ-वर्जन-प्रतिमा, भृतक-प्रेष्यारम्भ-वर्जन-प्रतिमा, उद्दिष्ट-भक्त-वर्जन-प्रतिमा, श्रमणभूत-प्रतिमा । [७२] इन सभी श्रमणोपासकों ने २०-२० वर्ष तक श्रावक-धर्म का पालन किया, अन्त में एक महीने की संलेखना तथा अनशन द्वारा देह-त्याग किया, सौधर्म देवलोक में चारचार पल्योपम आयु के देवों के रूप में उत्पन्न हुए । देव भव के अनन्तर सभी महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होंगे, मोक्ष-लाभ करेंगे । ७ उपासकदशा-अंगसूत्र-७ हिन्दी अनुवाद पूर्ण) आगमसूत्र-भाग-५-का हिन्दी अनुवाद पूर्ण

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