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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
होते हैं, तथा जिस समय कृतयुग्मराशि होते हैं, क्या उस समय त्र्योजराशि होते हैं । गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! जिस समय वे जीव त्र्योजराशि होते हैं, क्या उस समय द्वापरयुग्मराशि होते हैं तथा जिस समय वे द्वापरयुग्मराशि होते हैं, क्या उस समय वे त्र्योजराशि होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । कल्योजराशि के साथ कृतयुग्मादिराशि-सम्बन्धी वक्तव्यता भी इसी प्रकार जाननी चाहिए । शेष सब कथन पूर्ववत् यावत् वैमानिक जानना किन्तु सभी का उपपात व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार समझना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
| शतक-४१ उद्देशक-३ || [१०७०] भगवन् ! राशियुग्म-द्वापरयुग्मराशि वाले नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् जानना । किन्तु इनका परिमाण-ये दो, छह, दस, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! वे जीव जिस समय द्वापरयुग्म होते हैं, क्या उस समय कृतयुग्म होते हैं, अथवा जिस समय कृतयुग्म होते हैं, क्या उस समय द्वापरयुग्म होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी प्रकार त्र्योजराशि के साथ भी कृतयुग्मादि सम्बन्धी वक्तव्यता कहना | कल्योजराशि के साथ भी कृतयुग्मादि-सम्बन्धी वक्तव्यता इसी प्रकार है । शेष कथन प्रथम उद्देशक के अनुसार, वैमानिक पर्यन्त करना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'।
| शतक-४१ उद्देशक-४ | [१०७१] भगवन् ! राशियुग्म-कल्योजराशि नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । विशेष-ये एक, पांच, नौ, तेरह संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! वे जीव जिस समय कल्योज होते हैं, क्या उस समय कृतयुग्म होते हैं अथवा जिस समय कृतयुग्म होते हैं, क्या उस समय कल्योज होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। इसी प्रकार त्र्योज तथा द्वापरयुग्म के साथ कृतयुग्मादि कथन जानना । शेष सब वर्णन प्रथम उद्देशक के समान वैमानिक पर्यन्त जानना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' ।
| शतक-४१ उद्देशक-५ से २८. [१०७२] भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले राशियुग्म-कृतयुग्मराशिरूप नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इनका उपपात धूमप्रभापृथ्वी समान है । शेष.कथन प्रथम उद्देशक अनुसार जानना । असुरकुमारों के विषय में भी इसी प्रकार वाणव्यन्तर पर्यन्त कहना चाहिए । मनुष्यों के विषय में भी नैरयिकों के समान कथन करना । वे आत्मअयशपूर्वक जीवन-निर्वाह करते हैं । अलेश्यी, अक्रिय तथा उसी भव में सिद्ध होने का कथन नहीं करना । शेष प्रथमोद्देशक समान है । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' । कृष्णलेश्या वाले राशियुग्म में त्र्योजराशि तथा द्वापरयुग्मराशि नैरयिक का उद्देशक भी इसी प्रकार है । कृष्णलेश्या वाले कल्योजराशि नैरयिक का उद्देशक भी इसी प्रकार जानना । किन्तु इनका परिमाण और संवेध औधिक उद्देशक अनुसार समझना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' |
_कृष्णलेश्या वाले जीवों के अनुसार नीललेश्यायुक्त जीवों के भी पूर्ण चार उद्देशक कहने चाहिए । विशेष में, नैरयिकों के उपपात का कथन वालुकाप्रभा के समान जानना । शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' । इसी प्रकार कापोतलेश्या-सम्बन्धी भी चार