Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 186
________________ ज्ञाताधर्मकथा-१/-/१५/१५७ १८५ सुख-पूर्वक अहिच्छत्रा नगरी तक पहुँचाएगा दो बार और तीन बार ऐसी घोषणा कर दो । घोषणा करके मेरी यह आज्ञा वापिस लौटाओ मुझे सूचित करो । तत्पश्चात् उन कौटुम्बिक पुरुषों ने यावत् इस प्रकार घोषणा की 'हे चम्पा नगरी के निवासी भगवंतो ! चरक आदि ! सुनो, इत्यादि कहकर उन्होंने धन्य- सार्थवाह की आज्ञा उसे वापिस सौंपी । - कौटुम्बिक पुरुषों की पूर्वोक्त घोषणा सुनकर चम्पा नगरी के बहुत-से चरक यावत् गृहस्थ धन्य- सार्थवाह के समीप पहुँचे । तब उन चरक यावत् गृहस्थों में से जिनके पास जूते नहीं थे, उन्हें धन्य - सार्थवाह ने जूते दिलवाये, यावत् पथ्यदन दिलवाया । फिर उनसे कहा'देवानुप्रियो ! तुम जाओ और चम्पा नगरी के बाहर उद्यान में मेरी प्रतीक्षा करते हुए ठहरों ।' तदनन्तर वे पूर्वोक्त चरक यावत् गृहस्थ प्रतीक्षा करते हुए ठहरे । तब धन्य - सार्थवाह ने शुभ तिथि, करण और नक्षत्र में विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन बनवाया । मित्रों, ज्ञातिजनों आदि को आमन्त्रित करके उन्हें जिमाया । जिमा कर उनसे अनुमति ली । गाड़ी-गाड़े जुतवाये और फिर चम्पा नगरी से बाहर निकला । बहुत दूर-दूर पर पड़ाव न करता हुआ अर्थात् थोड़ी-थोड़ी दूर पर मार्ग में बसता-बसता, सुखजनक वसति और प्रातराश करता हुआ अंग देश के बीचोंबीच होकर देश की सीमा पर जा पहुँचा । गाड़ी गाड़े खोले । पड़ाव डा । फिर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहा 'देवानुप्रियो ! तुम मेरे सार्थ के पड़ाव में ऊँचे-ऊँचे शब्दों से बार-बार उद्घोषणा करते हुए ऐसा कहो कि - हे देवानुप्रियो ! आगे आने वाली अटवी में मनुष्यों का आवागमन नहीं होता और वह बहुत लम्बी है । उस अटवी के मध्य भाग में 'नन्दीफल' नामक वृक्ष हैं । वे गहरे हरे वर्ण वाले यावत् पत्तों वाले, पुष्पों वाले, फलों वाले, हरे, शोभायमान और सौन्दर्य से अतीव अतीव शोभित हैं । उनका रूप-रंग मनोज्ञ है यावत् स्पर्श मनोहर है और छाया भी मनोहर है । किन्तु हे देवानुप्रियो ! जो कोई भी मनुष्य उन नन्दीफल वृक्षों के मूल, कंद, छाल, पत्र, पुष्प, फल, बीज या हरित का भक्षण करेगा अथवा उनकी छाया में भी बैठेगा, उसे आपाततः तो अच्छा लगेगा, मगर बाद में उनका परिणमन होने पर अकाल में ही वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा । अतएव कोई उन नंदीफलों के मूल आदि का सेवन न कहे यावत् उनकी छाया में विश्राम भी न करे, जिससे अकाल में ही जीवन का नाश न हो । हे देवानुप्रियो ! तुम दूसरे वृक्षों के मूल यावत् हरित का भक्षण करना और उनकी छाया में विश्राम ना । इस प्रकार की आघोषणा कर दो । मेरी आज्ञा वापिस लौटा दो ।' कौटुम्बिक पुरुषों ने आज्ञानुसार घोषणा करके आज्ञा वापिस लौटा दी । इसके बाद धन्य-सार्थवाह ने गाड़ी - गाड़े जुतवाए । जहाँ नंदीफल नामक वृक्ष थे, वहाँ आ पहुँचा । उन नंदीफल वृक्षों से न बहुत दूर नसमीप में पड़ाव डाला । फिर दूसरी बार और तीसरी बार कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे कहा- 'देवानुप्रियो ! तुम लोग मेरे पड़ाव में ऊँची-ऊँची ध्वनि से पुनः पुनः घोषणा करते हुए कहो कि - 'हे देवानुप्रियो ! वे नन्दीफल वृक्ष ये हैं, जो कृष्ण वर्ण वाले, मनोज्ञ वर्ण, गंध, रस, स्पर्श वाले और मनोहर छाया वाले हैं । वहां दूसरे वृक्षों के मूल आदि का सेवन करना और उनकी छाया में विश्राम करना ।' कौटुम्बिक पुरुषों ने इसी प्रकार घोषणा करके आज्ञा वापिस सौंपी ।

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