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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
उन्होंने हाथ में एक लोहदण्ड लिया और पाण्डवों के रथ को चूर-चूर कर दिया । उन्हें देशनिर्वासन की आज्ञा दी । फिर उस स्थान पर रथमर्दन नामक कोंट स्थापित किया-रथमर्दन तीर्थ की स्थापना की । तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव अपनी सेना के पड़ाव में आये । आकर अपनी सेना के साथ मिल गये । उसके पश्चात् कृष्ण वासुदेव जहाँ द्वारका नगरी थी, वहाँ आकर द्वारका नगरी में प्रविष्ट हुए ।
[१७९] तत्पश्चात् वे पांचों पाण्डव हस्तिनापुर नगर आये । पाण्डु राजा के पास पहुंचे और हाथ जोड़कर बोले-'हे तात ! कृष्ण ने हमें देशनिर्वासन की आज्ञा दी है ।' तब पाण्डु राजा ने पांच पाण्डवों से प्रश्न किया-पुत्रो ! किस कारण वासुदेव ने तुम्हें देशनिर्वासन की आज्ञा दी ?' तब पांच पाण्डवों ने पाण्डु राजा को उत्तर दिया-तात ! हम लोग अमरकंका से लौटे और दो लाख योजन विस्तीर्ण लवणसमुद्र को पार कर चुके, तब कृष्ण वासुदेव ने हमसे कहा-देवानुप्रियो ! तुम लोग चलो, गंगा महानदी पार करो यावत् मेरी प्रतीक्षा करते हुए ठहरना। तब तक मैं सुस्थित देव से मिलकर आता हूँ इत्यादि पूर्ववत् कहना । हम लोग गंगा महानदी पार करके नौका छिपा कर उनकी राह देखते ठहरे । तदनन्तर कृष्ण वासुदेव लवणसमुद्र के अधिपति सुस्थित देव से मिल कर आये । इत्यादि पूर्ववत्-केवल कृष्ण के मन में जो विचार उत्पन्न हुआ था, वह नहीं कहना । यावत् कुपित होकर उन्होंने हमें देशनिर्वासन की आज्ञा दे दी । तब पाण्डु राजा ने पांच पाण्डवों से कहा-'पुत्रो ! तुमने कृष्ण वासुदेव का अप्रिय करके बुरा काम किया ।'
तदनन्तर पाण्डु राजा ने कुन्ती देवी को बुलाकर कहा-'देवानुप्रिये ! तुम द्वारका जाओ और कृष्ण वासुदेव से निवेदन करो कि–'हे देवानुप्रिय ! तुमने पांचों पाण्डवों को देशनिर्वासन की आज्ञा दी है, किन्तु हे देवानुप्रिय ! तुम तो समग्र दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र के अधिपति हो । अतएव हे देवानुप्रिय ! आदेश दो कि पांच पाण्डव किस देश में या दिशा अथवा विदिशा में जाएँ ? तब कुन्ती देवी, पाण्डु राजा के इस प्रकार कहने पर हाथी के स्कंध पर आरूढ़ होकर पहले कहे अनुसार द्वारका पहुँची । अग्र उद्यान में ठहरी । कृष्ण वासुदेव को सूचना करवाई । कृष्ण स्वागत के लिए आये । उन्हें महल में ले गये । यावत् पूछा-'हे पितृभगिनी ! आज्ञा कीजिए, आपके आने का क्या प्रयोजन है ?' तब कुन्ती देवी ने कृष्ण वासुदेव से कहा'हे पुत्र ! तुमने पांचों पाण्डवों को देश-निकाले का आदेश दिया है और तुम समग्र दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र के स्वामी हो, तो बतलाओ वे किस देश में, किस दिशा या विदिशा में जाएँ ?'
तब कृष्ण वासुदेव ने कुन्ती देवी से कहा-'पितृभगिनी ! उत्तम पुरुष अपूतिवचन होते हैं-उनके वचन मिथ्या नहीं होते । देवानुप्रिये ! पांचों पांडव दक्षिण दिशा के वेलातट जाएँ, वहाँ पाण्डु-मथुरा नामक नयी नगरी बसायें और मेरे अदृष्ट सेवक होकर रहें । इस प्रकार कहकर उन्होंने कुन्ती देवी का सत्कार-सम्मान किया, यावत् उन्हें विदा दी । तत्पश्चात् कुन्ती देवी ने द्वारवती नगरी से आकर पाण्डु राजा को यह अर्थ (वृत्तान्त) निवेदन किया । तब पाण्डु राजा ने पांचों पाण्डवों को बुलाकर कहा-'पुत्रो ! तुम दक्षिणी वेलातट जाओ वहाँ पाण्डुमथुरा नगरी बसा कर रहो ।' तब पांचों पाण्डवों ने पाण्डु राजा की यह बात स्वीकार करके बल और वाहनों के साथ घोड़े और हाथी साथ लेकर हस्तिनापुर से बाहर निकले । दक्षिणी वेलातट पर पहुँचे । पाण्डुमथुरा नगरी की स्थापना की । नगरी की स्थापना करके वे वहाँ विपुल भोगों के समूह