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ज्ञाताधर्मकथा-२/३/-/२२६
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पूर्वभव पृछा । वाराणसी नगरी थी । उसमें काममहावन चैत्य था । इल गाथापति था । इलश्री पत्नी थी । इला पुत्री थी । शेष वृत्तान्त काली देवी के समान विशेष यह कि इला आर्या शरीर त्याग कर धरणेन्द्र की अग्रमहिषी के रूप में उत्पन्न हुई । उसकी आयु अर्द्धपल्योपम से कुछ अधिक है । शेष वृत्तान्त पूर्ववत् ।।
इसी क्रम से सतेरा, सौदामिनी, इन्द्रा, घना और विद्युता, इन पाँच देवियों के पाँच अध्ययन समझ लेने चाहिएँ । ये सब धरणेन्द्र की अग्रमहिषियाँ हैं । इसी प्रकार छह अध्ययन, बिना किसी विशेषता के वेणुदेव के भी कह लेने चाहिए । इसी प्रकार घोष इन्द्र की पटरानियों के भी येही छह-छह अध्ययन कह लेने चाहिएँ । इस प्रकार दक्षिण दिशा के इन्द्रों के चौपन अध्ययन होते हैं । ये सब वाणारसी नगरी के महाकामवन नामक चैत्य में कहने चाहिएँ । यहाँ तीसरे वर्ग का निक्षेप भी कह लेना चाहिए ।
(वर्ग-४ [२२७] प्रारम्भ में चौथे वर्ग का उपोद्घात कह लेना चाहिए, जम्बू ! यावत् सिद्धिप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने धर्मकथा के चौथे वर्ग के चौपन अध्ययन कहे हैं । प्रथम अध्ययन यावत् चौपनवां अध्ययन । यहाँ प्रथम अध्ययन का उपोद्घात कह लेना । हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर में भगवान् पधारे । नगर में परिषद् निकली यावत् भगवान् की पर्युपासना करने लगी ।
उस काल और उस समय में रूपा देवी, रूपानन्दा राजधानी में, रूपकावतंसक भवन में, रूपक नामक सिंहासन पर आसीन थी । इत्यादि वृत्तान्त काली देवी के समान समझना, विशेषता इतनी है-पूर्वभव में चम्पा नगरी थी, पूर्णभद्र चैत्य था, वहाँ रूपक नामक गाथापति था । रूपकश्री उसकी भार्या थी । रूपा उसकी पुत्री थी । शेष पूर्ववत् । विशेषता यह कि रूपा भूतानन्द नामक इन्द्र की अग्रमहिषी के रूप में जन्मी । उसकी स्थिति कुछ कम एक पल्योपम की है । चौथे वर्ग के प्रथम अध्ययन का निक्षेप समझ लेना ।
इसी प्रकार सुरूपा भी, रूपांशा भी, रूपवती भी, रूपकान्ता भी और रूपप्रभा के विषय में भी समझ लेना चाहिए, इसी प्रकार उत्तर दिशा के इन्द्रों यावत् महाघोष की छहछह पटरानियों के छह-छह अध्ययन कह लेना चाहिए, सब मिलकर चौपन अध्ययन हो जाते हैं । यहाँ चौथे वर्ग का निक्षेप-पूर्ववत् कह लेना ।
(वर्ग-५) [२२८] पंचम वर्ग का उपोद्घात पूर्ववत् कहना चाहिए । जम्बू ! पांचवें वर्ग में बत्तीस अध्ययन हैं । यथा
[२२९] कमला, कमलप्रभा, उत्पला, सुदर्शना, रूपवती, बहुरूपा, सुरूपा, सुभगा । [२३०] पूर्णा, बहुपुत्रिका, उत्तमा, भारिका, पद्मा, वसुमती कनका, कनकप्रभा । [२३१] अवतंसा, केतुमती, वज्रसेना, रतिप्रिया, रोहिणी, नवमिका, ह्री, पुष्पवती । [२३२] भुजगा, भुजगवती, महाकच्छा, अपराजिता, सुघोषा, विमला, सुस्वरा, सरस्वती।