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उपासकदशा- १/८
के तौलिए आदि परिमाण किया । मैं सुगन्धित और लाल- एक प्रकार के अंगोछे के अतिरिक्त सभी अंगोछे रूप परिग्रह का परित्याग करता हूं । तत्पश्चात् उसने दतौन के संबंध में परिमाण किया :- हरि मुलहठी के अतिरिक्त मैं सब प्रकार के दतौनों का परित्याग करता हूं । तदनन्तर उसने फलविधि का परिमाण किया : मैं क्षीर आमलक के सिवाय शेष फल-विधि का परित्याग करता हूं । उसके बाद उसने अभ्यंगन - विधि का परिमाण किया :- शतपाक तथा सहस्त्रपाक तैलों के अतिरिक्त और सभी मालिश के तैलों का परित्याग करता हूं । इसके बाद उसने उबटन - विधि का परिमाण किया । एक मात्र सुगन्धित गंधाटक- अतिरिक्त अन्य सभी उबटनों का मैं परित्याग कता हूं ।
उसके बाद उसने स्नान - विधि का परिमाण किया । पानी के आठ औष्ट्रिक - (घड़े) के अतिरिक्त स्नानार्थ जल का परित्याग करता हूं । उसने वस्त्रविधि का परिमाण किया :-सूती दो वस्त्रों के सिवाय मैं अन्य वस्त्रों का परित्याग करता हूं । उसने विलेपन - विधि का परिमाण किया • अगर, कुंकुम तथा चन्दन के अतिरिक्त मैं सभी विलेपन- द्रव्यों का परित्याग करता हूं । इसके पश्चात् उसने पुष्प - विधि का परिमाण किया :- मैं श्वेत कमल तथा मालती के फूलों की माला के सिवाय सभी फूलों के का परित्याग करता हूं । तब उसने आभरण-विध का परिमाण किया :- मैं शुद्ध सोने सादे कुंडल और नामांकित मुद्रिका के सिवाय सब प्रकार के गहनों का परित्याग करता हूं । तदनन्तर उसने धूपनविधि का परिमाण किया । अगर, लोबान तथा धूप के सिवाय मैं सभी धूपनीय वस्तुओं का परित्याग करता हूं ।
उसने भोजन - विधि का परिमाण किया । मैं एक मात्र काष्ठ पेय अतिरिक्त सभी पेय पदार्थों का परित्याग करता हूं । उसने भक्ष्य - विधि का परिमाण किया । मैं-घेवर और खाजे के सिवाय और सभी पकवानों का परित्याग करता हूं । उसने ओदनविधि का परिमाण किया :- कलम जाति के धान चावलों के सिवाय मैं और सभी प्रकार के चावलों का परित्याग करता हूं । उसने सूपविधि का परिमाण किया । मटर, मूंग और उरद की दाल के सिवाय मैं सभी दालों का परित्याग करता । घृतविधि का परिमाण किया । शरद् ऋतु के उत्तम गोघृत के सिवाय मैं सभी प्रकार के घृत का परित्याग करता हूं ।
उसने शाकविधि का परिमाण किया । बथुआ, लौकी, सुआपालक तथा भिंडी - इन सागों के सिवाय और सब प्रकार के सागों का परित्याग करता हूं । माधुरकविधि का परिमाण किया । मैं पालंग माधुरक के गोंद से बनाए मधुर पेय के सिवाय अन्य सभी पेयों का परित्याग करता हूं । व्यंजनविधि का परिमाण किया । मैं कांजी बड़े तथा खटाई बड़े मूंग आदि की दाल के पकौड़ों के सिवाय सब प्रकार के पदार्थों का परित्याग करता हूं । पीने के पानी का परिमाण किया । मैं एक मात्र आकाश से गिरे - पानी के सिवाय अन्य सब प्रकार के पानी का परित्याग करता हूं । मुखवासविधि का परिमाण किया । पांच सुगन्धित वस्तुओं से युक्त पान के सिवाय मैं सभी पदार्थों का परित्याग करता हूं ।
तत्पश्चात् उसने चार प्रकार के अनर्थदण्ड- अपध्यानाचरित, प्रमादाचरित, हिंस्त्र-प्रदान तथा पापकर्मोपदेश का प्रत्याख्यान किया ।
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[९] भगवान् महावीर ने श्रमणोपासक आनन्द से कहा- आनन्द ! जिसने जीव, अजीव आदि पदार्थों के स्वरूप को यथावत् रूप में जाना है, उसको सम्यक्त्व के पांच प्रधान अतिचार जानने चाहिए और उनका आचरण नहीं करना चाहिए । यथा-शंका, कांक्षा, विचिकित्सा,