Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 244
________________ उपासकदशा-१/१ २४३ - नमो नमो निम्मलदसणस्स उपासकदशा अंगसूत्र-७ हिन्दी अनुवाद - (अध्ययन-१ आनंद ) [१] उस काल, उस समय में, चम्पा नामक नगरी थी, पूर्णभद्र चैत्य था । (वर्णन औपपातिक सूत्र समान) । [२] उस काल उस समय आर्यसुधर्मा समवसृत हुए । आर्य सुधर्मा के ज्येष्ठ अन्तेवासी आर्य जम्बू नामक अनगार ने-पूछा छठे अंग नायाधम्मकहाओ का जो अर्थ बतलाया, वह मैं सुन चुका हूं । भगवान् ने सातवें अंग उपासकदशा का क्या अर्थ व्याख्यात किया ? जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर ने सातवें अंग उपासकदशा के दस अध्ययन प्रज्ञप्त किये [३] आनन्द, कामदेव, गाथापति चुलनीपिता, सुरादेव, चुल्लशतक, गाथापति कुंडकौलिक, सद्दालपुत्र, महाशतक, नन्दिनीपिता, शालिहीपिता । [४] भगवन् ! श्रमण भगवान् महावीर ने सातवें अंग उपासकदशा के जो दस अध्ययन व्याख्यात किए, उनमें उन्होंने पहले अध्ययन का क्या अर्थ-कहा ? [५] जम्बू ! उस काल, उस समय, वाणिज्यग्राम नगर था । उस के बाहर-ईशान कोण में दूतीपलाश चैत्य था । जितशत्रु वहां का राजा था । वहां वाणिज्यग्राम में आनन्द नामक गाथापति था जो धनाढ्य यावत् अपरिभूत था । आनन्द गाथापति का चार करोड़ स्वर्ण खजाने में, चार करोड़ स्वर्ण व्यापार में, चार करोड़ स्वर्ण-धन, धान्य आदि में लगा था । उसके चार व्रज-गोकुल थे । प्रत्येक गोकुल में दस हजार गायें थीं । आनन्द गाथापति बहुत से राजा-यावत् सार्थवाह के अनेक कार्यो में, कारणों में, मंत्रणाओं में, पारिवारिक समस्याओं में, गोपनीय बातों में, एकान्त में विचारणीय व्यवहारों में पूछने योग्य एवं सलाह लेने योग्य व्यक्ति था । वह परिवार का मेढि-यावत् सर्व-कार्य-वर्धापक था । ____ आनन्द गाथापति की शिवनन्दा नामक पत्नी थी, वह परिपूर्ण अंगवाली यावत् सर्वांगसुन्दरी थी । आनन्द गाथापति की वह इष्ट-एवं अनुरक्त थी । पति के प्रतिकूल होने पर भी वह कभी रुष्ट नहीं होती थी । वह अपने पति के साथ इष्ट-प्रिय सांसारिक काम भोग भोगती हुई रहती थी । वाणिज्य ग्राम नगर के बाहर कोल्लाक नामक सन्निवेश था-वह सन्निवेश समृद्धिवान्, निरुपद्रव, दर्शनीय, सुंदर यावत् मनका प्रसन्नता देनेवाला था । वहां कोल्लाक सन्निवेश में आनन्द गाथापति के अनेक मित्र, ज्ञातिजन-स्वजातीय लोग, निजक, स्वजन, सम्बन्धी, परिजन आदि निवास करते थे, जो समृद्ध एवं सुखी थे । उस काल उस समय में श्रमण भगवंत महावीर पधारे । पर्षदा नीकली । वंदन करके वापस लौटी । कोणिक राजा कि तरह जितशत्रु राजा भी नीकला । वंदन यावत् पर्युपासना की । तत्पश्चात् आनंद गृहपतिने भगवंत महावीर के आने की बात सूनी । अरिहंत भगवंतो का नाम श्रवण भी दुर्लभ है फिर वंदन नमस्कार का तो कहना ही क्या ? इसीलिए मै वहां

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