Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 247
________________ २४६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद पर-पाषंड-प्रशंसा तथा पर-पाषंड-संस्तव । इसके बाद श्रमणोपासक को स्थूल-प्राणातिपातविरमण व्रत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए । बन्ध, वध, छविच्छेद, अतिभार, भक्तपान-व्यवच्छेद । तत्पश्चात् स्थूल मृषावादविरमण व्रत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए | सहसा-अभ्याख्यान, रहस्य-अभ्याख्यान, स्वादरमंत्रभेद, मृषोपदेश, कूटलेखकरण । तदनन्तर स्थूल अदत्तादानविरमण-व्रत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए । स्तेनाहृत, तस्करप्रयोग, विरुद्धराज्यातिक्रम, कूटतुलाकूटमान, तत्प्रतिरूपकव्यवहार । तदनन्तर स्वदारसंतोष-व्रत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए । इत्वरिकपरिगृहीतागमन, अपरिगृहीतागमन, अनंगक्रीडा, पर-विवाहकरण तथा कामभोगतीव्राभिलाष । श्रमणोपासक को इच्छा-परिमाण-व्रत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए । क्षेत्रवास्तुप्रमाणतिक्रम, हिरण्यस्वर्ण-प्रमाणातिक्रम, द्विपदचतुष्पद-प्रमाणातिक्रम, धनधान्य-प्रमाणातिक्रम, कुप्य-प्रमाणातिक्रम । तदनन्तर दिग्वत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए । उनका आचरण नहीं करना चाहिए । ऊर्ध्व-दिक्-प्रमाणातिक्रम, अधोदिक्-प्रमाणातिक्रम, तिर्यक्-दिक्-प्रमाणातिक्रम, क्षेत्रवृद्धि, स्मृत्यन्तर्धान । उपभोग-परिभोग दो प्रकार का कहा गया है-भोजन की अपेक्षा से तथा कर्म की अपेक्षा से । भोजन की अपेक्षा से श्रमणोपासक को उपभोग-परिभोग व्रत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए । सचित्त आहार, सचित्तप्रतिबद्ध आहार, अपक्क औषधि-भक्षणता, दुष्पक्क औषधि-भक्षणता तथा तुच्छ औषधि-भक्षणता । कर्म की अपेक्षा से श्रमणोपासक को पन्द्रह कर्मादानों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए । वे अंगारकर्म, वनकर्म, शकटकर्म, भाटीकर्म, स्फोटनकर्म, दन्तवाणिज्य, लाक्षावाणिज्य, रसवाणिज्य, विषवाणिज्य, केशवाणिज्य, यन्त्रपीडनकर्म, निलांछन-कर्म, दवाग्निदापन, सर-हृद-तडागशोषण तथा असती-जन-पोषण । उसके बाद श्रमणोपासक को अनर्थ-दंड-विरमण व्रत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए । कन्दर्प, कौत्कुच्य, मौखर्य, संयुक्ताधिकरण तथा उपभोग परिभोगातिरेक । तत्पश्चात् श्रमणोपासक को सामायिक व्रत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए । मन-दुष्प्रणिधान, वचन-दुष्प्रणिधान, काय-दुष्प्रणिधान, सामायिक-स्मृति-अकरणता, सामायिक-अनवस्थित-करणता । तदनन्तर श्रमणोपासक को देशावकाशिक व्रत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना। आनयनप्रयोग, प्रेष्य-प्रयोग, शब्दानुपात, रूपानुपात तथा बहिःपुद्गल-प्रक्षेप । तदनन्तर श्रमणोपासक को पोषधोपवास व्रत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए। अप्रतिलेखितदुष्प्रतिलेखित-शय्या-संस्तारक, अप्रमार्जितदुष्प्रमार्जित-शय्यासंस्तारक, अप्रतिलेखितदुष्प्रतिलेखित उच्चारप्रस्त्रवण-भूमि, अप्रमार्जितदुष्प्रमार्जित-उच्चारप्रस्त्रवणभूमि तथा पोषधोपवास-सम्यक्-अननुपालन । तत्पश्चात् श्रमणोपासक को यथा-संविभाग व्रत के पांच अतिचारों को जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए । सचित्तनिक्षेपणता, सचित्तपिधान, कालातिक्रम, परव्यपदेश तथा मत्सरिता । तदनन्तर अपश्चिम-मरणांतिक-संलेषणा-जोषणाआराधना के पांच अतिचारों को जानना

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