Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 253
________________ २५२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद अर्जुन-वृक्ष-विशेष के गांठ जैसे, टेढ़े, देखने में विकृत व बीभत्स थे । पिंडलियां कठोर थीं, बालों से भरी थीं । उसके दोनों पैर दाल आदि पीसने की शिला के समान थे । पैर की अंगुलियां लोढ़ी जैसी थीं । अंगुलियों के नाखून सीपियों के सदृश थे । उस पिशाच के घुटने मोटे एवं ओछे थे, गाड़ी के पीछे ढीले बंधे काठ की तरह लड़खड़ा रहे थे । उसकी भौहें विकृत-भग्न और टेढ़ी थीं । उसने अपना दरार जैसा मुंह फाड़ रखा था, जीभ बाहर निकाल रक्खी थी । वह गिरगिटों की माला पहने था । चूहों की माला भी उसने धारण कर रक्खी थी । उसके कानों में कुण्डलों के स्थान पर नेवले लटक रहे थे। उसने अपनी देह पर सांपों को दुपट्टे की तरह लपेट रक्खा था । वह भुजाओं पर अपने हाथ ठोक रहा था, गरज रहा था, भयंकर अट्टहास कर रहा था । उसका शरीर पांचों रंगों के बहुविध केशों से व्याप्त था । वह पिशाच नीले कमल, भैंसे के सींग तथा अलसी के फूल जैसी गहरी नीली, तेज धार वाली तलवार लिये, जहां पोषधशाला थी, श्रमणोपासक कामदेव था, वहां आया । अत्यन्त क्रुद्ध, रुष्ट, कुपित तथा विकराल होता हुआ, मिसमिसाहट करता हुआ तेज सांस छोड़ता हुआ श्रमणोपासक कामदेव से बोला-अप्रार्थित उस मृत्यु को चाहने वाले ! पुण्यचतुर्दशी जिस दिन हीन-थी-घटिकाओं में अमावस्या आगई थी, उस अशुभ दिन में जन्मे हुए अभागे! लज्जा, शोभा, धृति तथा कीर्ति से परिवर्जित ! धर्म, पुण्य, स्वर्ग और मोक्ष की कामना इच्छा एवं पिपासा-रखने वाले ! शील, व्रत, विरमण, प्रत्याख्यान तथा पोषधोपवास से विचलित होना, विक्षुभित होना, उन्हें खण्डित करना, भग्न करना, उज्झित करना-परित्याग करना तुम्हें नहीं कल्पता है-इनका पालन करने में तुम कृतप्रतिज्ञ हो । पर, यदि तुम आज शील, एवं पोषधोपवास का त्याग नहीं करोगे, मैं इस तलवार से तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा, जिससे हे देवानुप्रिय ! तुम आर्त ध्यान एवं विकट दुःख से पीडित होकर असमय में ही जीवन से पृथक् हो जाओगे-प्राणों से हाथ दो बैठोगे । उस पिशाच द्वारा यों कहे जाने पर भी श्रमणोपासक कामदेव भीत, त्रस्त, उद्विग्न, क्षुभित एवं विचलित नहीं हुआ; धबराया नहीं । वह चुपचापशान्त भाव से धर्म-ध्यान में स्थित रहा । [२२] पिशाच का रूप धारण किये हुए देव ने श्रमणोपासक कामदेव को यों निर्भय भाव से धर्म-ध्यान में निरत देखा । तब उसने दूसरी बार, तीसरी बार फिर कहा-मौत को चाहने वाले श्रमणोपासक कामदेव ! आज प्राणों से हाथ धो बैठोगे । श्रमणोपासक कामदेव उस देव द्वारा दूसरी बार, तीसरी बार यों कहे जाने पर भी अभीत रहा, अपने धर्मध्यान में उपगत रहा । [२३] जब पिशाच रूपधारी उस देव ने श्रमणोपासक कामदेव को निर्भय भाव से उपासना-रत देखा तो वह अत्यन्त क्रुद्ध हुआ, उसके ललाट में त्रिबलिक-चढ़ी भृकुटि तन गई । उसने तलवार से कामदेव पर वार किया और उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले । श्रमणोपासक कामदेव ने उस तीव्र तथा दुःसह वेदना को सहनशीलता पूर्वक झेला | जब पिशाच रूप धारी देव ने देखा, श्रमणोपासक कामदेव निर्भीक भाव से उपासना में रत हैं, वह श्रमणोपासक कामदेव को निर्ग्रन्थ प्रवचन-से विचलित, क्षुभित, विपरिणामित नहीं कर सका है, उसके मनोभावों को नहीं बदल सका है, तो वह श्रान्त, क्लान्त और खिन्न होकर धीरे-धीरे पीछे हटा। पीछे हटकर पोषधशाला से बाहर निकला । देवमायाजन्य पिशाच-रूप का त्याग किया । एक

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