Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 238
________________ ज्ञाताधर्मकथा-२/१/१/२२० २३७ मनः पर्याप्ति आदि पाँच प्रकार की पर्याप्तियों से युक्त हो गई । वह काली देवी चार हजार सामानिक देवों तथा अन्य बहुतेरे कालावतंसक नामक भवन में निवास करने वाले असुरकुमार देवों और देवियों का अधिपतित्व करती हुई यावत् रहने लगी । इस प्रकार हे गौतम! काली देवी ने वह दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवधुति और दिव्य देवानुभाव प्राप्त किया है यावत् उपभोग में आने योग्य बनाया है । गौतम स्वामी ने प्रश्न किया- 'भगवन् ! काली देवी की कितने काल की स्थिति कही गई है ?' भगवान् -'हे गौतम ! अढ़ाई पल्योपम की स्थिति कही है ।' गौतम - 'भगवन् ! काली देवी उस देवलोक से अनन्तर चय करके कहाँ उत्पन्न होगी ?' भगवान् - 'गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर यावत् सिद्धि प्राप्त करेगी यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेगी ।' है जम्बू ! यावत् सिद्धि को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है । मैंने तुमसे कहा है । वर्ग-१ अध्ययन - २ 'राजी' [२२१] 'भगवन् ! यदि यावत् सिद्धि को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने धर्मकथा प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो यावत् सिद्धिप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने दूसरे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?” हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था तथा गुणशील नामक चैत्य था । स्वामी पधारे । वन्दन करने के लिए परिषद् निकली यावत् भगवान् की उपासना करने लगी । उस काल और उस समय में राजीनाम देवी चमरचंचा राजधानी से काली देवी के समान भगवान् की सेवा में आई और नाट्यविधि दिखला कर चली गई । उस समय 'हे भगवन् !' इस प्रकार कह कर गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार करके राजी देवी के पूर्वभव की पृच्छा की । हे गौतम! उस काल और उस समय में आमलकल्पा नगरी थी | आम्रशालवन नामक उद्यान था । जितशत्रु राजा था । राजी नामक गाथापति था । उसकी पत्नी का नाम राजश्री था । राजी उसकी पुत्री थी । किसी समय पार्श्व तीर्थंकर पधारे । काली की भाँति राजी दारिका भी भगवान् को वन्दना करने के लिए निकली । वह भी काली की तरह दीक्षित होकर शरीरवकुश हो गई । शेष समस्त वृत्तान्त काली के समान ही समझना, यावत् वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्धि प्राप्त करेगी । इस प्रकार हे जम्बू ! द्वितीय अध्ययन का निक्षेप जानना । वर्ग-१ अध्ययन - ३ 'रजनी' [२२२] तीसरे अध्ययन का उत्क्षेप इस प्रकार हे — 'भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने धर्मकथा के प्रथम वर्ग के द्वितीय अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ कहा है तो, भगवन् ! श्रमण भगवान् महावीर ने तीसरे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? जम्बू ! राजगृह नगर था, गुणशील चैत्य था इत्यादि राजी के समान रजनी के विषय में भी नाट्यविधि दिखलाने आदि कहना चाहिए । विशेषता यह है-आमलकल्पा नगरी में रजनी नामक गाथा था । उसकी पत्नी का नाम रजनीश्री था । उसकी पुत्री का भी नाम रजनी था । शेष पूर्ववत्, यावत् वह महाविदेह क्षेत्र से मुक्ति प्राप्त करेगी ।

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