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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
[२०५] जिह्वा-इन्द्रिय के विषय को प्राप्त शुभ अथवा अशुभ रसों में साधु को कभी तुष्ट अथवा रुष्ट नहीं होना चाहिए ।
[२०६] स्पर्शनेन्द्रिय के विषय बने हुए प्राप्त शुभ अथवा अशुभ स्पर्शों में साधु को कभी तुष्ट या रुष्ट नहीं होना चाहिए ।
[२०७] जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर ने सत्रहवें ज्ञात-अध्ययन का यह अर्थ कहा है । वही अर्थ मैं तुझसे कहता हूँ । अध्ययन-१७ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
( अध्ययन-१८ 'सुंसुमा' ) [२०८] 'भगवन् ! श्रमण भगवान् महावीर ने अठारहवें अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?' -- 'हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था, (वर्णन) । वहाँ धन्य नामक सार्थवाह निवास करता था । भद्रा नाम की उसकी पत्नी थी । उस धन्य-सार्थवाह के पुत्र, भद्रा के आत्मज पाँच सार्थवाहदारक थे । धन, धनपाल, धनदेव, धनगोप और धनरक्षित । धन्य-सार्थवाह की पुत्री, भद्रा की आत्मजा और पाँचों पुत्रों के पश्चात् जन्मी हुई सुंसुमा नामक बालिका थी । उसके हाथ-पैर आदि अंगोपांग सुकुमार थे । उस धन्य-सार्थवाह का चिलात नामक दास चेटक था उसकी पाँचों इन्द्रियाँ पूरी थीं और शरीर भी परिपूर्ण एवं मांस से उपचित था । वह बच्चों को खेलाने में कुशल भी था ।
अतएव वह दासचेटक सुंसुमा बालिका का बालग्राहक नियत किया गया । वह सुंसुमा बालिका को कमर में लेता और बहुत-से लड़कों, लड़कियों, बच्चों, बच्चियों, कुमारों और कुमारिकाओं के साथ खेलता रहता था । उस समय वह चिलात दास-चेटक उन बहुत-से लड़कों, लड़कियों, बच्चों, बच्चियों, कुमारों और कुमारियों में से किन्ही की कौड़ियाँ हरण कर लेता- । इसी प्रकार वर्तक, आडोलिया, दड़ा, कपड़ा और साडोल्लक हर लेता था । किन्हींकिन्हीं के आभरण, माला और अलंकार हरण कर लेता था । किन्हीं पर आक्रोश करता, हँसी उड़ाता, टग लेता, भर्त्सना करता, तर्जना करता और किसी को मारता-पीटता था ।
तब वे बहुत-से लड़के, लड़कियां, बच्चे, बच्चियाँ, कुमार और कुमारिकाएँ रोते हुए, चिल्लाते हुए, शोक करते हुए, आँसू बहाते हुए, विलाप करते हुए जाकर अपने-अपने मातापिताओं से चिलात की करतूत कहते थे । उस समय बहुत-से लड़कों, लड़कियों, बच्चे, बच्चियों, कुमारों और कुमारिकाओं के माता-पिता धन्य-सार्थवाह के पास आते । आकर धन्यसार्थवाह को खेदजनक वचनों से, रुंवासे होकर उलाहने देते थे और धन्य-सार्थवाह को यह कहते थे । धन्य-सार्थवाह ने चिलात दास-चेटक को इस बात के लिए बार-बार मना किया, मगर चिलात दास-चेटक रुका नहीं, माना नहीं । धन्य सार्थवाह के रोकने पर भी चिलात दास-चेटक उन बहुत-से लड़कों, लड़कियों, बच्चों, बच्चियों, कुमार और कुमारिकाओं में से किन्हीं की कौड़ियाँ हरण करता रहा और किन्हीं को यावत् मारता-पीटता रहा ।
तब वे बहुत लड़के-लड़कियाँ, बच्चे-बच्चियाँ, कुमार और कुमारिकाएँ रोते-चिल्लाते गये, यावत् माता-पिताओं से उन्होंने यह बात कह सुनाई । तब वे माता-पिता एकदम क्रुद्ध हुए, रुष्ट, कुपित, प्रचण्ड हुए, क्रोध से जल उठे और धन्य सार्थवाह के पास पहुँचे । पहुँच कर