Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 225
________________ २२४ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद बहुत-सी कूविय सेना को हत एवं मथित करके रोकता था - भगा देता था और फिर उस धन आदि को लेकर अपना कार्य करके सिंहगुफा चोरपल्ली में सकुशल वापिस आ जाता था । उस विजय चोरसेनापति ने चिलात तस्कर को बहुत-सी चौरविद्याएँ, चोरमंत्र, चोरमायाएँ और चोरनिकृतियाँ सिखला दीं । विजय चोर किसी समय मृत्यु को प्राप्त हुआ-तब उन पांच सौ चोरों ने बड़े ठाठ और सत्कार के समूह के साथ विजय चोरसेनापति का नीहरण किया- फिर बहुत-से लौकिक मृतककृत्य किये । कुछ समय बीत जाने पर वे शोकरहित हो गये । उन पाँच सौ चोरों ने एक दूसरे को बुलाया । तब उन्होंने आपस में कहा - 'देवानुप्रियो ! हमारा चोरसेनापति विजय कालधर्म से संयुक्त हो गया है और विजय चोरसेनापति ने इस चिलात तस्कर को बहुत-सी चोरविद्याएं आदि सिखलाई हैं । अतएव देवानुप्रियो ! हमारे लिए यही श्रेयस्कर होगा कि चिलात तस्कर का सिंहगुफा चोरपल्ली के चोरसेनापति के रूप में अभिषेक किया जाय ।' इस प्रकार एक दूसरे की बात स्वीकार की । चिलात तस्कर को सिंहगुफा चोरपल्ली के चोरसेनापति के रूप में अभिषिक्त किया । तब वह चिलात चोरसेनापति हो गया तथा विजय के समान ही अधार्मिक, क्रूरकर्मा एवं पापाचारी होकर रहने लगा । वह चिलात चोरसेनापति चोरों का नायक यावत् कुडंग के समान चोरोंजारों आदि का आश्रयभूत हो गया । वह उस चोरपल्ली में पाँच सौ चोरों का अधिपति हो गया, इत्यादि । यावत् वह राजगृह नगर के दक्षिण-पूर्व के जनपद निवासी जनों को स्थानहीन और धनहीन बनाने लगा | [२१०] तत्पश्चात् चिलात चोरसेनापति ने एक बार किसी समय विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार करवा कर पाँच सौ चोरों को आमंत्रित किया । फिर स्नान तथा कर्म करके भोजन - मंडप में उन पाँच सौ चोरों के साथ विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम का तथा सुरा प्रसन्ना नामक मदिराओं का आस्वादन, विस्वादन, वितरण एवं परिभोग करने लगा । भोजन कर चुकने के पश्चात् पाँच सौ चोरों का विपुल धूप, पुष्प, गंध, माला और अलंकार से सत्कार किया, सम्मान किया । उनसे इस प्रकार कहा - 'देवानुप्रियो ! राजगृह नगर में धन्य नामक धनाढ्य सार्थवाह है । उसकी पुत्री, भद्रा की आत्मजा और पांच पुत्रों के पश्चात् जन्मी हुई सुसुमा नाम की लड़की है । वह परिपूर्ण इन्द्रियों वाली यावत् सुन्दर रूप वाली है । तो देवानुप्रियो ! हम लोग चलें और धन्यसार्थवाह का घर लूटें । उस लूट में मिलने वाला विपुल धन, कनक, यावत् शिला, मूंगा वगैरह तुम्हारा होगा, सुंसुमा लड़की मेरी होगी।' तब उन पाँच सौ चोरों ने चोरसेनापति चिलात की बात अंगीकार की । तत्पश्चात् चिलात चोरसेनापति उन पाँच सौ चोरों के साथ आर्द्र चर्म पर बैठा । फिर दिन के अंतिम प्रहर में पाँच सौ चोरों के साथ कवच धारण करके तैयार हुआ । उसने आयुध और प्रहरण ग्रहण किये । कोमल गोमुखित फलक धारण किये । तलवारें म्यानों से बाहर निकाल लीं । कन्धों पर तर्कश धारण किये । धनुष जीवायुक्त कर लिए । वाण बाहर निकाल लिए । बर्छियाँ और भाले उछालने लगे । जंघाओं पर बाँधी हुई घंटिकाएँ लटका दी । शीघ्र बाजे बजने लगे । बड़े-बड़े उत्कृष्ट सिंहनाद और बोलों की कल-कल ध्वनि से ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे महासमुद्र का खलखल शब्द हो रहा हो । इस प्रकार शोर करते हुए वे सिंहगुफा नामक चोरपल्ली से बाहर निकले । राजगृह नगर आकर राजगृह नगर से कुछ दूर एक सघन

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