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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
योग्य मांगलिक उत्तम वस्त्र धारण किये । जिन प्रतिमाओं का पूजन किया । पूजन करके अन्तःपुर में चली गई।
[१७२] तत्पश्चात् अन्तःपुर की स्त्रियों ने राजवरकन्या द्रौपदी को सब अलंकारों से विभूषित किया । किस प्रकार ? पैरों में श्रेष्ठ नूपुर पहनाए, यावत् वह दासियों के समूह से परिवृत होकर अन्तःपुर से बाहर निकलकर जहाँ बाह्य उपस्थानशाला थी और जहाँ चार घंटाओं वाला अश्वस्थ था, वहाँ आई । आकर क्रीड़ा कराने वाली धाय और लेखिका दासी के साथ उस चार घंटा वाले रथ पर आरूढ़ हुई । उस समय धृष्टद्युम्न-कुमार ने द्रौपदी का सारथ्य किया, राजवरकन्या द्रौपदी कांपिल्यपुर नगर के मध्य में होकर जिधर स्वयंवर-मंडप था, उधर पहुँची । रथ रोका गया और वह रथ से नीचे उतरी । क्रीड़ा कराने वाली धाय और लेखिका दासी के साथ उसने स्वयंवरमण्डप में प्रवेश किया । दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर अंजलि करके वासुदेव प्रभृति बहुसंख्यक हजारों राजाओं को प्रणाम किया ।
तत्पश्चात् राजवरकन्या द्रौपदी ने एक बड़ा श्रीदामकाण्ड ग्रहण किया । वह कैसा था? पाटल, मल्लिका, चम्पक आदि यावत् सप्तपर्ण आदि के फूलों से गूंथा हुआ था । अत्यन्त गंध को फैला रहा था । अत्यन्त सुखद स्पर्श वाला था और दर्शनीय था । तत्पश्चात् उस क्रीड़ा कराने वाली यावत् सुन्दर रूप वाली धाय ने बाएँ हाथ में चिल-चिलाता हुआ दर्पण लिया । उस दर्पण में जिस-जिस राजा का प्रतिबिम्ब पड़ता था, उस प्रतिबिम्ब द्वारा दिखाई देने वाले श्रेष्ठ सिंह के समान राजा को अपने दाहिने हाथ से द्रौपदी को दिखलाती थी । वह धाय स्फुट विशद विशुद्ध रिभित मेघ की गर्जना के समान गंभीर और मधुर वचन बोलती हुई, उन सब राजाओं के माता-पिता के वंश, सत्त्व सामर्थ्य गोत्र पराक्रम कान्ति नाना प्रकार के ज्ञान माहात्म्य रूप यौवन गुण लावण्य कुल और शील को जानने वाली होने के कारण उनका बखान करने लगी ।
___ उनमें से सर्वप्रथम वृष्णियों में प्रधान समुद्रविजय आदि दस दसारों के, जो तीनों लोको में बलवान् थे, लाखों शत्रुओं का मान मर्दन करने वाले थे, भव्य जीवनों में श्रेष्ठ श्वेत कमल के समान प्रधान थे, तेज से देदीप्यमान थे, बल, वीर्य, रूप, यौवन, गुण और लावण्य का कीर्तन करने वाली उस धाय ने कीर्तन किया और फिर उग्रसेन आदि यादवों का वर्णन किया, तदनन्तर कहा-'ये यादव सौभाग्य और रूप से सुशोभित हैं और श्रेष्ठ पुरुषों में गंधहस्ती के समान हैं । इनमें से कोई तेरे हृदय को वल्लभ-प्रिय हो तो उसे वरण कर ।' तत्पश्चात् राजवरकन्या द्रौपदी अनेक सहस्त्र श्रेष्ठ राजाओं के मध्य में होकर, उनका अतिक्रमण करतीकरती, पूर्वकृत निदान से प्रेरित होती-होती, जहाँ पाँच पाण्डव थे, वहाँ आई । उसने उन पाँचों पाण्डवों को, पँचरंगे कुसुमदाम-फूलों की माला-श्रीदामकाण्ड-से चारों तरफ से वेष्टित करके कहा-'मैंने इन पाँचों पाण्डवों का वरण किया ।' तत्पश्चात् उन वासुदेव प्रभृति अनेक सहस्त्र राजाओं ने ऊँचे-ऊँचे शब्दों से बार-बार उद्घोषणा करते हुए कहा-'अहो ! राजवरकन्या द्रौपदी ने अच्छा वरण किया !' इस प्रकार कह कर वे स्वयंवरमण्डप से बाहर निकले । अपने-अपने आवासो में चले गये ।
। तत्पश्चात् धृष्टद्युम्न कुमार ने पाँचों पाण्डवों को और राजवरकन्या द्रौपदी को चार घंटाओं वाले अश्वरथ पर आरूढ़ किया और कांपिल्यपुर के मध्य में होकर यावत् अपने भवन