Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 204
________________ ज्ञाताधर्मकथा-१/-/१६/१७२ में प्रवेश किया । द्रुपदराजा ने पाँचों पाण्डवों को तथा राजवरकन्या द्रौपदी को पट्ट पर आसीन किया । चांदी और सोने के कलशों से स्नान कराया । अग्निहोम करवाया । फिर पाँचों पाण्डवों का द्रौपदी के साथ पाणिग्रहण कराया । तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने राजवरकन्या द्रौपदी को इस प्रकार का प्रीतिदान दिया - आठ करोड़ हिरण्य आदि यावत् आठ प्रेषणकारिणी दास - चेटियां । इनके अतिरिक्त अन्य भी बहुत सा धन - कनक यावत् प्रदान किया । तत्पश्चात् द्रुपद राजा ने उन वासुदेव प्रभृति राजाओं को विपुल अशन, पान, खादिम तथा स्वादिम तथा पुष्प, वस्त्र, गंध, माला और अलंकार आदि से सत्कार करके विदा किया । २०३ [१७३] तत्पश्चात् पाण्डु राजा ने उन वासुदेव प्रभृति अनेक सहस्त्र राजाओं से हाथ जोड़कर यावत् इस प्रकार कहा- देवानुप्रियो ! हस्तिनापुर नगर में पांच पाण्डवों और द्रौपदी का कल्याणकरण महोत्सव होगा । अतएव देवानुप्रियो ! तुम सब मुझ पर अनुग्रह करके यथासमय विलंब किये विना पधारना । तत्पश्चात् वे वासुदेव आदि नृपतिगण अलग-अलग यावत् हस्तिनापुर की ओर गमन करने के लिए उद्यत हुए । तत्पश्चात् पाण्डु राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार आदेश दिया- 'देवानुप्रियो ! तुम जाओ और हस्तिनापुर में पाँच पाण्डवों के लिए पाँच उत्तम प्रासाद बनवाओ, वे प्रासाद खूब ऊँचे हों और सात भूमि के हों इत्यादि पूर्ववत् यावत् वे अत्यन्त मनोहर हों । तब कौटुम्बिक पुरुषों ने यह आदेश अंगीकार किया, यावत् उसी प्रकार के प्रासाद बनवाये ।' तब पाण्डु राजा पांचों पाण्डवों और द्रौपदी देवी के साथ अश्वसेना, गजसेना आदि से परिवृत होकर कांपिल्यपुर नगर से निकल कर जहाँ हस्तिनापुर था, वहाँ आ पहुँचा । तत्पश्चात् पाण्डु राजा ने उन वासुदेव आदि राजाओं का आगमन जान कर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे कहा 'देवानुप्रियो ! तुम जाओ और हस्तिनापुर नगर के बाहर वासुदेव आदि बहुत हजार राजाओं के लिए आवास तैयार कराओ जो अनेक सैकड़ों स्तंभों आदि से युक्त हों इत्यादि पूर्ववत् ।' कौटुम्बिक पुरुष उसी प्रकार आज्ञा का पालन करके यावत् आज्ञा वापिस करते हैं । तत्पश्चात् वे वासुदेव वगैरह हजारों राजा हस्तिनापुर नगर में आये । तब पाण्डु राजा उन वासुदेव आदि राजाओं का आगमन जानकर हर्षित और संतुष्ट हुआ । उसने स्नान किया, बलिकर्म किया और द्रुपद राजा के समान उनके सामने जाकर सत्कार किया, यावत् उन्हें यथायोग्य आवास प्रदान किए । तब वे वासुदेव आदि हजारों राजा जहाँ अपने-अपने आवास थे, वहाँ गये और उसी प्रकार यावत् विचरने लगे । तत्पश्चात् पाण्डु राजा ने हस्तिनापुर नगर में प्रवेश किया । कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा - 'हे देवानुप्रियो ! तुम विपुल अशन पान खादिम और स्वादिम तैयार कराओ ।' उन कौटुम्बिक पुरुषों ने उसी प्रकार किया यावत् वे भोजन तैयार करवा कर ले गये । तब उन वासुदेव आदि बहुत-से राजाओं ने स्नान एवं कार्य करके उस विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम का आहार किया और उसी प्रकार विचरने लगे । तत्पश्चात् पाण्डु राजा ने पाँच पाण्डवों को तथा द्रौपदी को पाट पर बिठाया । श्वेत और पीत कलशों से उनका अभिषेक किया । फिर कल्याणकर उत्सव किया। उत्सव करके उन वासुदेव आदि बहुत हजार राजाओं का विपुल अशन, पानं, खादिम और स्वादिम से तथा पुष्पों और वस्त्रों से सत्कार किया, सम्मान किया । यावत् उन्हें विदा किया।

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