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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
भव का क्षय होने से, अन्तर रहित, शरीर का त्याग करके इसी जम्बूद्वीप में, भरत वर्ष में विशुद्ध माता-पिता के वंशवाले राजकुलों में, अलग-अलग कुमार के रूप में उत्पन्न हुए । प्रतिबुद्धि इक्ष्वाकु देश का राजा हुआ । चंद्रच्छाय अंगदेश का राजा हुआ, शंख कासीदेव का राजा हुआ, रुक्मि कुणालदेश का राजा हुआ, अदीनशत्रु कुरुदेश का राजा हुआ जितशत्रु पंचाल देश का राजा हुआ ।
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वह महाबल देव तीन ज्ञानों से युक्त होकर, जब समस्त ग्रह उच्च स्थान पर रहे थे, सभीदिशायें सौम्य, वितिमिर और विशुद्ध थी, शकुन विजयकारक थे, वायु दक्षिण की ओर चल रहा था और वायु अनुकूल था, पृथ्वी का धान्य निष्पन्न हो गया था, लोग अत्यन्नत हर्षयुक्त होकर क्रीड़ा कर रहे थे, ऐसे समय में अर्द्ध रात्रि के अवसर पर अश्विनी नक्षत्र का चन्द्रमा के साथ योग होने पर, हेमन्त ऋतु के चौथे मास, आठवें पक्ष फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में, चतुर्थी तिथि के पश्चात् भाग में बत्तीस सागरोपम की स्थिति वाले जयन्त नामक विमान से, अनन्तर शरीर त्याग कर, इसी जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र में, मिथिला राजधानी में, कुंभ राजा की प्रभावती देवी की कूंख में देवगति सम्बन्धी आहार का त्याग करते, वैक्रिय शरीर का त्याग करके एवं देवभव का त्याग करके गर्भ के रूप में उत्पन्न हुआ । उस रात्रि में प्रभावती देवी वास भवन में, शय्या पर यावत् अर्द्ध रात्रिके समय जब न गहरी सोई थी न जाग रही थी, तब प्रधान, कल्याणरूप, उपद्रवरहित, धन्य, मांगलिक और सश्रीक चौदह महास्वप्न देख कर जागी । वे चौदह स्वप्न इस प्रकार हैं-गज, वृषभ, सिंह, अभिषेक, पुष्पमाला, चन्द्रमा, सूर्य, ध्वजा, कुम्भ, पद्मयुक्त सरोवर, सागर, विमान, रत्नों की राशि और धूमरहित अग्नि । पश्चात् प्रभावती रानी जहाँ राजा कुम्भ थे, वहाँ आई । पति से स्वप्नों का वृत्तान्त कहा । कुम्भ राजा ने स्वप्नपाठकों को बुलाकर स्वप्नों का फल पूछा । यावत् प्रभावती देवी हर्षित एवं संतुष्ट होकर विचरने लगी ।
तत्पश्चात् प्रभावती देवी को तीन मास बराबर पूर्ण हुए तो इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ-वे माताएं धन्य हैं जो जल और थल मैं उत्पन्न हुए देदीप्यमान, अनेक पंचरंगे पुष्पों से आच्छादित और पुनः पुनः आच्छादित की हुई शय्या पर सुखपूर्वक बैठी हुई और सुख से सोई हुई विचरती हैं तथा पाटला, मालती, चम्पा, अशोक, पुंनाग के फूलों, मरुवा के पत्तों, दमनक के फूलों, निर्दोष शतपत्रिका के फूलों एवं कोरंट के उत्तम पत्तों से गूंथे हुए, परमसुखदायक स्पर्शवाले, देखने में सुन्दर तथा अत्यन्त सौरभ छोड़नेवाले श्रीदामकाण्ड के समूह को सूंघती हुई अपना दोहद पूर्ण करती हैं । तत्पश्चात् प्रभावती देवी को इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ देख कर जान कर समीपवर्ती वाण - व्यन्तर देवों ने शीघ्र ही जल और थल में उत्पन्न हुए यावत् पांच वर्ण वाले पुष्प, कुम्भों और भारों के प्रमाण में अर्थात् बहुत से पुष्प कुम्भ राजा के भवन में लाकर पहुँचा दिये । इसके अतिरिक्त सुखप्रद एवं सुगन्ध फैलाता हुआ एक श्रीदामकाण्ड भी लाकर पहुँचा दिया |
तत्पश्चात् प्रभावती देवी ने जल और थल में उत्पन्न देदीप्यमान पंचवर्ण के फूलों की माला से अपना दोहला पूर्ण किया । तब प्रभावती देवी प्रशस्तदोहला होकर विचरने लगी । प्रभावती देवी ने नौ मास और साढ़े सात दिवस पूर्ण होने पर, हेमन्त ऋतु के प्रथम मास में, दूसरे पक्ष में अर्थात् मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष में, एकादशी के दिन, मध्य रात्रि में,