________________
१५२
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
शीघ्र ही अने खम्भों वाली यावत् मनोरमा नामक शिबिका उपस्थित करो ।' तब वे देव भी मनोरमा शिबिका लाये और वह शिबिका भी उसी मनुष्यों की शिबिका में समा गई ।
तत्पश्चात् मल्ली अरहन्त सिंहासन से उठे । जहां मनोरमा शिबिका थी, उधर आकर मनोरमा शिबिका की प्रदक्षिणा करके मनोरमा शिविका पर आरूढ़ हुए । पूर्व दिशा की ओर मुख करके सिंहासन पर विराजमान हुए । कुम्भ राजा ने अठारह जातियों-उपजातियों को बुलवा कर कहा-'हे देवानुप्रियों ! तुम लोग स्नान करके यावत् सर्व अलंकारों से विभूषित होकर मल्ली कुमारी की शिविका वहन करो ।' यावत् उन्होंने शिविका वहन की । शक्र देवेन्द्र देवराज ने मनोरमा शिविका की दक्षिण तरफ की ऊपरी बाहा ग्रहण की, ईशान इन्द्र ने उत्तर तरफ की ऊपरी बाहा ग्रहण की, चमरेन्द्र ने दक्षिण तरफ की और बली ने उत्तर तरफ़ की निचली बाहा ग्रहण की । शेष देवों ने यथायोग्य उस मनोरमा शिबिका को वहन किया ।
[१०४] मनुष्यों ने सर्वप्रथम वह शिबिका उठाई । उनके रोमकूप हर्ष के कारण विकस्वर हो रहे थे । उसके बाद असुरेन्दों, सुरेन्दों और नागेन्द्रों ने उसे वहन किया ।
[१०५] चलायमान चपल कुण्डलों को धारण करने वाले तथा अपनी इच्छा के अनुसार विक्रिया से बनाये हुए आभरणों को धारण करनेवाले देवेन्द्रों और दानवेन्द्रों ने जिनेन्द्र देव की शिविका वहन की ।
[१०६] तत्पश्चात् मल्ली अरहंत जब मनोरमा शिविका पर आरूढ़ हुए, उस समय उनके आगे आठ-आठ मंगल अनुक्रम से चले । जमालि के निर्गमन की तरह यहाँ मल्ली अरहंत का वर्णन समझ लेना । तत्पश्चात् मल्ली अरहंत जब दीक्षा धारण करने के लिए निकले तो किन्हीं-किन्हीं देवों ने मिथिला राजधानी में पानी सींच दिया, उसे साफ कर दिया और भीतर तथा बाहर की विधि करके यावत् चारों ओर दौड़धूप करने लगे । तत्पश्चात् मल्ली अरहंत जहाँ सहस्त्राम्रवन नामक उद्यान था और जहाँ श्रेष्ठ अशोकवृक्ष था, वहाँ आकर शिविका से नीचे उतरे । समस्त आभरणों का त्याग किया । प्रभावती देवी ने हंस के चिह्न वाली अपनी साड़ी में आभरण ग्रहण किये । तत्पश्चात् मल्ली अरहंत ने स्वयं ही पंचमुष्टिक लोच किया । तब शक्र देवेन्द्र देवराज ने मल्ली के केशों को ग्रहण करके उन केशों को क्षीरोदकसमुद्र में प्रक्षेप कर दिया । तत्पश्चात् मल्ली अरिहन्त ने 'सिद्धों को नमस्कार हो' इस प्रकार कह कर सामायिक चारित्र अंगीकार किया ।
जिस समय अरहंत मल्ली ने चारित्र अंगीकार किया, उस समय देवों और मनुष्यों के निर्घोष, वाद्यों की ध्वनि और गाने-बजाने का शब्द शक्रेन्द्र के आदेश से बिल्कुल बन्द हो गया। जिस समय मल्ली अरहन्त ने सामायिक चारित्र अंगीकार कियी, उसी समय मल्ली अरहंत को मनुष्यधर्म से ऊपर का उत्तम मनःपर्ययज्ञान उत्पन्न हो गया | मल्ली अरहन्त ने हेमन्त ऋतु के दूसरे मास में, चौथे पखवाड़े में अर्थात् पौष मास के शुद्ध पक्ष में पौष मास के शुद्ध पक्ष की एकादशी के पक्ष में पूर्वाह्न काल के समय में, निर्जल अष्टम भक्त तप करके, अश्विनी नक्षत्र के साथ चन्द्र का योग प्राप्त होने पर, तीन सौ आभ्यन्तर परिषद् की स्त्रियों के साथ और तीन सौ बाह्य परिषद् के पुरुषों के साथ मुण्डित होकर दीक्षा अंगीकार की । मल्ली अरहंत का अनुसरण करके इक्ष्वाकुवंश में जन्में तथा राज्य भोगने योग्य हुए आठ ज्ञातकुमार दीक्षित हुए । उनके नाम इस प्रकार हैं :