Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 183
________________ १८२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद धीरे-धीरे वहाँ से खिसक गया । उसी अश्व की पीठ पर सवार होकर तेतलिपुत्र के मध्यभाग में होकर अपने घर की तरफ खाना हुआ । तेतलिपुत्र को वे ईश्वर आदि देखते हैं, किन्तु वे पहले की तरह उसका आदर नहीं करते, उसे नहीं जानते, सामने नहीं खड़े होते, हाथ नहीं जोड़ते और इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनोहर वाणी से बात नहीं करते । आगे, पीछे और अगल-बगल में उसके साथ नहीं चलते । तब तेतलिपुत्र अपने घर आया । बाहर की जो परिषद् होती है, जैसे कि दास, प्रेष्य तथा भागीदार आदि; उस बाहर की परिषद् ने भी उसका आदर नहीं किया, उसे नहीं जाना और न खड़ी हुई और जो आभ्यन्तर परिषद् होती है, जैसे कि माता, पिता, भाई, बहिन, पत्नी, पुत्र, पुत्रवधू आदि; उसने भी उसका आदर नहीं किया, उसे नहीं जाना और न उठ कर खड़ी हुई । तत्पश्चात् तेतलिपुत्र जहाँ उसका अपना वासगृह था और जहाँ शय्या थी, वहाँ आया। बैठ कर इस प्रकार कहने लगा-'मैं अपने घर से किला और राजा के पास गया । मगर राजा ने आदर-सत्कार नहीं किया । लौटते समय मार्ग के भी किसी ने आदर नहीं किया । घर आया तो बाह्य परिषद् ने भी आदर नहीं किया, यावत् आभ्यन्तर परिषद् ने भी आदर नहीं किया, मानो मुझे पहचाना ही नहीं, कोई खड़ा नहीं हुआ । ऐसी दशा में मुझे उपने को जीवन से रहित कर लेना ही श्रेयस्कर है ।' इस प्रकार तेतलिपुत्र ने विचार किया । विचार करके तालपुट विष-अपने मुख में डाला । परन्तु उस विष में संक्रमण नहीं किया । तत्पश्चात् तेतलिपुत्र ने नीलकमल, के समान श्याम वर्ण की तलवार अपने कन्धे पर वहन की; मगर उसकी धार कुंठित हो गई । तत्पश्चात् तेतलिपुत्र अशोकवाटिका में गया । वहाँ जाकर उसने अपने गले में पाश बाँधा-फिर वृक्ष पर चढ़कर वह पाश वृक्ष से बाँधा । फिर अपने शरीर को छोड़ा किन्तु रस्सी टूट गई । तत्पश्चात् तेतलिपुत्र ने बहुत बड़ी शिला गर्दन में बाँधी । अथाह, और अपौरुष जल में अपना शरीर छोड़ दिया । पर वहाँ वह जल छिछला हो गया । तत्पश्चात् तेतलिपुत्र ने सूखे घास के ढेर में आग लगाई और अपने शरीर को उसनें डाल दिया । मगर वह अग्नि भी बुझ गई। तत्पश्चात् तेतलिपुत्र मन ही मन इस प्रकार बोला-'श्रमण श्रद्धा करने योग्य वचन बोलते हैं, माहण श्रद्धा करने योग्य वचन बोलते हैं, मैं ही एक हूँ जो अश्रद्धेय वचन कहता हूँ । मैं पुत्रों सहित होने पर भी पुत्रहीन हूँ, कौन मेरे इस कथन पर श्रद्धा करेगा ? मैं मित्रों सहित होने पर भी मित्रहीन हूँ, कौन मेरी इस बात पर विश्वास करेगा ? इसी प्रकार धन, स्त्री, दास और परिवार से सहित हो पर भी मैं इनसे रहित हूँ, कौन मेरी इस बात पर श्रद्धा करेगा? इस प्रकार राजा कनकध्वज के द्वारा जिसका बुरा विचारा गया है, ऐसे तेतलिपुत्र अमात्य ने अपने मुख में विष डाला, मगर विष ने कुछ भी प्रभाव न दिखलाया, मेरे सि कथन पर कौन विश्वास करेगा ? तेतलिपुत्र ने अपने गले में नील कमल जैसी तलवार का प्रहार किया, मगर उसकी धार कुंठित हो गई, कौन मेरी इस बात पर श्रद्धा करेगा ? तेतलिपुत्र ने अपने गले में फाँसी लगाई, मगर रस्सी टूट गई, मेरी इस बात पर कौन भरोसा करेगा ? तेतलिपुत्र ने गले में भारी शिला बाँधकर अथाह जल में अपने आपको छोड़ दिया, मगर वह पानी छिछला हो गया, मेरी यह बात कौन मानेगा ? तेतलिपुत्र सूखे घास में आग लगा कर उसमें कूद गया, मगर आग बुझ गई, कौन इस बात पर विश्वास करेगा ? इस प्रकार तेतलिपुत्र भग्नमनोरथ

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