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ज्ञाताधर्मकथा-१/-/८/१०६
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[१०७] नन्द, नन्दिमित्र, सुमित्र, बलमित्र, भानुमित्र, अमरपति, अमरसेन और आठवें महासेन । इन आठ ज्ञातकुमारों ने दीक्षा अंगीकार की ।
[१०८] तत्पश्चात् भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक-इन चार निकाय के देवों ने मल्ली अरहन्त का दीक्षा-महोत्सव किया । महोत्सव करके जहाँ नन्दीश्वर द्वीप था, वहाँ गये । जाकर अष्टाह्निका महोत्सव किया । महोत्सव करके यावत् अपने-अपने स्थान पर लौट गये । तत्पश्चात् मल्ली अरहन्त ने, जिस दिन दीक्षा अंगीकार की, उसी दिन के अन्तिम भाग में, श्रेष्ठ अशोकवृक्ष के नीचे, पृथ्वीशिलापट्टक के ऊपर विराजमान थे, उस समय शुभ परिणामों के कारण, प्रशस्त अध्यवसाय के कारण तथा विशुद्ध एवं प्रशस्त लेश्याओं के कारण, तदावरण कर्म की रज को दूर करने वाले लेश्याओं के कारण, तदावरण कर्म की रज को दूर करने वाले अपूर्वकरण को प्राप्त हुए । तत्पश्चात् अरहन्त मल्ली को अनन्त सब आवरणों से रहित, सम्पूर्ण और प्रतिपूर्ण केवल-ज्ञान और केवल-दर्शन की उत्पत्ति हुई ।
[१०९] उस काल और उस समय में सब देवों के आसन चलायमान हुए । तब वे सब देव वहाँ आये, सबने धर्मोपदेश श्रवण किया । नन्दीश्वर द्वीप में जाकर अष्टाह्निका महोत्सव किया । फिर जिस दिशा में प्रकट हुए थे, उसी दिशा में लौट गये । कुम्भ राजा भी वन्दना करने के लिए निकला । तत्पश्चात् वे जिसशत्रु वगैरह छहों राजा अपने-अपने ज्येष्ठ पुत्रों को राज्य पर स्थापित करके, हजार पुरुषों द्वारा वहन की जानेवाली शिविकाओं पर आरूढ़ होकर समस्त ऋद्धि के साथ यावत् गीत-वादित्र के शब्दों के साथ जहाँ मल्ली अरहन्त थे, यावत् वहाँ आकर उनकी उपासना करने लगे । तत्पश्चात् मल्ली अरहन्त ने उस बड़ी भारी परिषद् को, कुम्भ राजा को और उन जितशत्रु प्रभृति छहों राजाओं को धर्म का उपदेश दिया। परिषद् जिस दिशा में आई थी, उस दिशा में लौट गई । कुम्भ राजा श्रमणोंपासक हुआ । वह भी लौट गया । रानी प्रभावती श्रमणोपासिका हुई । वह भी वापिस चली गई ।
तत्पश्चात् जितशत्रु आदि छहों राजाओं ने धर्म को श्रवण करके कहा-भगवन् ! यह संसार जरा और मरण से आदीप्त है, प्रदीप्त है और आदीप्त प्रदीप्त है, इत्यादि कहकर यावत् वे दीक्षित हो गये । चौदह पूर्वो के ज्ञानी हुए, फिर अनन्त केवल-दर्शन प्राप्त करके यावत् सिद्ध हुए । तत्पश्चात् मल्ली अरहन्त सहस्राम्रवन उद्यान से बाहर निकले । निकलकर जनपदों में विहार करने लगे । मल्ली अरहन्त के भिषक आदि अट्ठाईस गण और अट्ठाईस गणधर थे। मल्ली अरहंत की चालीस हजार साधुओं की उत्कृष्ट सम्पदा थी । बंधुमती आदि पचपन हजार आर्यिकाओं की सम्पदा थी । मल्ली अरहन्त की एक लाख चौरासी हजार श्रावकों की उत्कृष्ट सम्पदा थी । मल्ली अरहन्त की तीन लाख पैसठ हजार श्राविकाओं की उत्कृष्ट सम्पदा थी । मल्ली अरहन्त की छह सौ चौदहपूर्वी साधुओं की, दो हजार अवधिज्ञानी, बत्तीस सौ केवलज्ञानी, पैतीस सौ वैक्रियलब्धिधारों, आठ सौ मनःपर्यायज्ञानी, चौदह सौ वादी और बीस सौ अनुत्तरौपपातिक साधुओं की सम्पदा थी ।
मल्ली अरहन्त के तीर्थ में दो प्रकार की अन्तकर भूमि हुई । -युगान्तकर भूमि और पर्यायान्तकर भूमि । इनमें से शिष्य-प्रशिष्य आदि बीस पुरुषों रूप युगों तक युगान्तकर भूमि हुई, और दो वर्ष का पर्याय होने पर पर्यायान्तकर भूमि हुई । मल्ली अरहन्त पच्चीस धनुष ऊँचे थे । उनके शरीर का वर्ण प्रियंगु के समान था । सम-चतुरस्त्र संस्थान और वज्रऋषभनाराच