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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
गया, अतएव वे वनखण्ड कृष्ण वर्ण वाले तथा गुच्छा रूप हो गये खूब धने हो गये । वे पत्तोंवाले, पुष्पोवाले यावत् शोभायमान हो गये ।
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तत्पश्चात् नंद मणियार सेठ ने पूर्व दिशा के वनखण्ड में एक विशाल चित्रसभा बनवाई । वह कई सौ खंभों की बनी हुई थी, प्रसन्नताजनक, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप थी । उस चित्रसभा में बहुत-से कृष्ण वर्ण वाले यावत् शुक्ल वर्ण वाले काष्ठकर्म, पुस्तकर्म, चित्रकर्म, लेप्यकर्म-ग्रंथिक कर्म, वेष्टितकर्म, पूरिमकर्म और संघातिमकर्म थीं । वे कलाकृतियाँ इतनी सुन्दर थीं कि दर्शकगण उन्हें एक दूसरे को दिखा-दिखा कर वर्ण करते थे । उस चित्रसभा में बहुत-से आसन और शयन निरन्तर बिछे रहते थे । वहाँ बहुत से नाटक करनेवाले और नृत्य करनेवाले, यावत् वेतन देकर रखे हुए थे । वे तालाचर कर्म किया करते थे । राजगृह से बार सैर के लिए किले हुए बहुत लोग उस जगह आकर पहले से ही बिछे हुए आसनों और शयनों पर बैठकर और लेट कर कथा - वार्त्ता सुनते थे और नाटक आदि देखते थे और वहाँ की शोभा अनुभव करते हुए सुखपूर्वक विचरण करते थे । नन्दी मणिकार सेठ ने दक्षिण तरफ के वनखंड में एक बड़ी महानसशाला बनवाई । वह भी अनेक सैकड़ों खंभों वाली यावत् प्रतिरूप थी । वहाँ भी बहुत-से लोग जीविका, भोजन और वेतन देकर रखे गये थे । वे विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार पकाते थे और बहुत-से श्रमणों, ब्राह्मणों, अतिथियों, दरिद्रों और भिखारियों को देते रहते थे ।
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नन्द मणिकार सेठने पश्चिम दिशा के वनखण्ड में एक विशाल चिकित्साशाला बनवाई। वह भी अनेक सौ खम्भों वाली यावत् मनोहर थी । उस में बहुत से वैद्य, वैद्यपुत्र, ज्ञायक, ज्ञायकपुत्र, कुशल और कुशलपुत्र आजीविका, भोजन और वेतन पर नियुक्त किये हुए थे । वे बहुत-से व्याधितों की, ग्लानों की, रोगियों की और दुर्बलों की चिकित्सा करते रहते थे । उस चिकित्साशाला में दूसरे भी बहुत से लोग आजीविका, भोजन और वेतन देकर रखे गये थे । वे उन व्याधितों, रोगियों, ग्लानों और दुर्बलों की औषध भेषज भोजन और पानी से सेवा-शुश्रूषा करते थे । तत्पश्चात् नन्द मणियार सेठ ने उत्तर दिशा वनखण्ड में एक बड़ी अलंकारसभा बनवाई । वह भी अनेक सैकड़ों स्तंभों वाली यावत् मनोहर थी । उसमें बहुतसे आलंकारिक पुरुष जीविका, भोजन और वेतन देकर रखे गये थे । वे बहुत-से श्रमणों, अनाथों, ग्लानों, रोगियों और दुर्बलों का अलंकारकर्म करते थे । उस नंदा पुष्करिणी में बहुतसे सनाथ, अनाथ, पथिक, पांथिक, करोटिका, घसियारे, पत्तों के भार वाले, लकड़हारे आदि आते थे । उनमें से कोई-कोई स्नान करते थे, पानी पीते थे और पानी भर ले जाते थे । कोई-कोई-पसीने, जल्ल, मल, परिश्रम, निद्रा, क्षुधा और पिपासा का निवारण करके सुखपूर्वक करते थे । नंदा पुष्करिणी में राजगृह नगर में भी निकले - आये हुए बहुत-से लोग क्या करते थे ? वे लोग जल में रमण करते थे, विविध प्रकार से स्नान करते थे, कदलीगृहों, लतागृहों, पुष्पशय्या और अने पक्षियों के समूह के मनोहर शब्दों से युक्त नन्दा पुष्करिणी और चारों वनखण्डों में क्रीड़ा करते-करते विचरते थे ।
नंदा पुष्करिणी में स्नान करते हुए, पानी पीते हुए और पानी भर कर ले जाते हुए बहुत-से लोग आपस में कहते थे- 'हे देवानुप्रिय ! नन्द मणिकार सेठ धन्य है, उसकी जन्म और जीवन सफल है, जिसकी इस प्रकार की चौकोर यावत् मनोहर यह नंदा पुष्करिणी है;