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ज्ञाताधर्मकथा-१/-/१४/१४९
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तत्पश्चात् तेततिपुत्र ने पोट्टिला दारिका को भार्या के रूप में आई हुई देखी । देखकर वह पोट्टिला के साथ पट्ट पर बैठा । चांदी-सोने के कलशों से उसने स्वयं स्नान किया । स्नान करके अग्नि में होम किया । तत्पश्चात् पोट्टिला भार्या के मित्रजनों, ज्ञातिजनों, निजजनों, स्वजनों, सम्बन्धियों एवं परिजनों का अशन, पान, खादिम, स्वादिम से तथा पुष्प वस्त्र गंध माला और अलंकार आदि से सत्कार-सम्मान करके उन्हें विदा किया । तत्पश्चात् तेतलिपुत्र अमात्य पोट्टिला भार्या में अनुरक्त होकर, अविरक्त-आसक्त होकर उदार यावत् रहने लगा ।
[१४९] कनकरथ राजा राज्य में, राष्ट्र में, बल, वाहनों में, कोष में, कोठार में तथा अन्तःपुर में अत्यन्त आसक्त था, लोलुप-गृद्ध और लालसामय था । अतएव वह जो-जो पुत्र उत्पन्न होते उन्हें विकलांग कर देता था । किन्हीं की हाथ की अंगुलियाँ काट देता, किन्हीं के हाथ का अंगूठा कोट देता, इसी प्रकार किसी के पैर की अंगुलियाँ, पैर का अंगूठा, कर्णशष्कुली और किसी का नासिकापुट काट देता था । इस प्रकार उसने सभी पुत्रों को अवयवविकल कर दिया था । तत्पश्चात् पद्मावती देवी को एक बार मध्य रात्रि के समय इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ-'कनकरथ राजा राज्य आदि में आसक्त होकर यावत् उनके अंगअंग काट लेता हैं,तो यदि मेरे अब पुत्र उत्पन्न हो तो मेरे लिए यह श्रेयस्कर होगा कि उस पुत्र को मैं कनकरथ से छिपा कर पालूँ-पोरौँ ।' पद्मावती देवी ने ऐसा विचार किया और विचार करके तेतलिपुत्र अमात्य को बुलवा कर उससे कहा
'हे देवानुप्रिय ! कनकरथ राजा राज्य और राष्ट्र आदि में अत्यन्त आसक्त होकर सब पुत्रों को अपंग कर देता हैं, अतः मैं यदि अब पुत्र को जन्म दूँ तो कनकरथ से छिपा कर ही अनुक्रम से उसका संरक्षण, संगोपन एवं संवर्धन करना । ऐसा करने से बालक बाल्यावस्था पार करके यौवन को प्राप्त होकर तुम्हारे लिए भी और मेरे लिए भी भिक्षा का भाजन बनेगा।' तब तेतलिपुत्र अमात्य ने पद्मावती के इस अर्थ को अंगीकार किया । वह वापिस लौट गया। तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने और पोट्टिला नामक अमात्यी ने एकही साथ गर्भ धारण किया, एक ही साथ गर्भ वहन किया और साथ-साथ हो गर्भ की वृद्धि की । तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने नौ मास पूर्ण हो जाने पर देखने में प्रिय और सुन्दर रूप वाले पुत्र को जन्म दिया । जिस रात्रि में पद्मावती देवी ने पुत्र को जन्म दिया, उसी रात्रि में पोट्टिला अमात्यपत्नी ने भी नौ मास व्यतीत होने पर मरी हुई बालिका का प्रसव किया । - उस समय पद्मावती देवी ने अपनी धायमाता को बुलाया और कहा-'तुम तेतलिपुत्र के घर जाओ और गुप्त रूप से बुला लाओ तब धायमाता ने पद्मावती का आदेश स्वीकार किया । वह अन्तःपुर के पिछले द्वार से निकल कर तेतलिपुत्र के घर पहुँची । वहाँ पहुँच कर दोनों हाथ जोड़ कर उसने यावत् कहा-'हे देवानुप्रिय ! आप को पद्मावती देवी ने बुलाया है ।' तेतलिपुत्र धायमाता से यह अर्थ सुनकर और हृदय में धारण करके हृदय-तुष्ट होकर धायमाता के पाथ अपने घर से निकला । अन्तःपुर के पिछले द्वार से गुप्त रूप से उसने प्रवेश किया। जहाँ पद्मावती देवी थी, वहाँ आया । दोनों हाथ जोड़कर 'देवानुप्रिये ! मुझे जो करना है, उसके लिए आज्ञा दीजिए ।'
___ तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने तेतलिपुत्र से इस प्रकार कहा-तुम्हें विदित ही है कि कनकरथ राजा यावत् सब पुत्रों को विकलांग कर देता हैं । 'हे देवानुप्रिय ! मैंने बालक का 512