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ज्ञाताधर्मकथा-१/-/८/८६
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तत्पश्चात् पद्मावती देवी की बहुत-सी दास-चेटियाँ फूलों की छबड़ियाँ तथा धूप की कुड़छियां हाथ में लेकर पीछे-पीछे चलने लगीं । पद्मावती देवी सर्व ऋद्धि के साथ-पूरे ठाठ के साथ-जहाँ नागगृह था, वहाँ आई | नागगृह में प्रविष्ट हुई । रोमहस्त लेकर प्रतिमा का प्रमार्जन किया, यावत् धूप खेई । प्रतिबुद्धि राजा की प्रतीक्षा करती हुई वहीं ठहरी । प्रतिबुद्धि राजा स्नान करके श्रेष्ठ हाथी के स्कंध पर आसीन हुआ । कोरंट के फूलों सहित अन्य पुष्पों की मालाएँ जिसमें लपेटी हुई थीं, ऐसा छत्र उसके मस्तक पर धारण किया गया । यावत् उत्तम श्वेत चामर ढोरे जाने लगे । उसके आगे-आगे विशाल घोड़े, हाथी, रथ और पैदल योद्धा । सुभटों के बड़े समूह के समूह चले । वह साकेत नगर से निकला । जहाँ नागगृह था, वहाँ आकर हाथी के स्कंध से नीचे उतरा । प्रतिमा पर दृष्टि पड़ते ही उसे प्रणाम किया । पुष्पमंडप में प्रवेश किया । वहाँ उसने एक महान् श्रीदामकाण्ड देखा ।
। तत्पश्चात् प्रतिबुद्धि राजा उस श्रीदामकाण्ड को बहुत देर तक देखकर उस श्रीदामकाण्ड के विषय में उसे आश्चर्य उत्पन्न हुआ । उसने सुबुद्धि अमात्य से इस प्रकार कहा-हे देवानुप्रिय! तुम मेरे दूत के रूप में बहुतेरे ग्रामों, आकरों, यावत् सन्निवेशों आदि में घूमते हो और बहुत से राजाओं एवं ईश्वरों आदि के गृहों में प्रवेश करते हो; तो क्या तुमने ऐसा सुन्दर श्रीदामकाण्ड पहले कहीं देखा हों जैसा पद्मावतो देवी कायह श्रीदामकाण्ड है ? तब सुबुद्धि अमात्य ने प्रतिबुद्धि राजा से कहा-स्वामिन् ! मैं एक बार किसी समय आपके दौत्यकार्य से मिथिला राजधानी गया था । वहाँ मैं कुम्भ राजा की पुत्री और प्रभावती देवी की आत्मजा, विदेह की उत्तम राजकुमारी मल्ली के संवत्सर-प्रतिलेखन उत्सव के महोत्सव के समय दिव्य श्रीदामकाण्ड देखा था । उस श्रीदामकाण्ड के सामने पदमावती देवी का यह श्रीदामकाण्ड शतसहस्त्र-लाखवां अंश भी नहीं पाता-लाखवें अंश की भी बराबरी नहीं कर सकता ।
तत्पश्चात् प्रतिबुद्धि राजा ने सुबुद्धि मंत्री से इस प्रकार कहा-देवानुप्रिय ! विदेह की श्रेष्ठ राजकुमारी मल्ली कैसी है ? जिसकी जन्मगांठ के उत्सव में बनाये गये श्रीदामकाण्ड के सामने पद्मावती देवी का यह श्रीदामकाण्ड लाखवां अंश भी नहीं पाता ? तब सुबुद्धि मंत्री ने इक्ष्वाकुराज प्रतिबुद्धि से कहा-'स्वामिन् ! विदेह की श्रेष्ठ राजकुमारी मल्ली सुप्रतिष्ठित और कछुए के समान उन्नत एवं सुन्दर चरणवाली है, इत्यादि । तत्पश्चात् प्रतिबुद्धि राजा ने सुबुद्धि अमात्य से यह अर्थ सुनकर और हृदय में धारण करके और श्रीदामकाण्ड की बात से हर्षित होकर दूत को बुलाया । और कहा-देवानुप्रिय ! तुम मिथिला राजधानी जाऔ । वहाँ कुम्भ राजा की पुत्री, पद्मावती देवी की आत्मजा और विदेह की प्रधान राजकुमारी मल्ली की मेरी पत्नी के रूप में मंगनी करो । फिर भले ही उसके लिए सारा राज्य शुल्क-मूल्य रूप में देना पड़े । तत्पश्चात् उस दूर ने प्रतिबुद्धि राजा के इस प्रकार कहने पर हर्षित और सन्तुष्ट होकर उसकी आज्ञा अंगीकार की । जहाँ अपना घर था और जहाँ चार घंटों वाला अश्वस्थ था, वहाँ आया । आकर चार घंटों वाले अश्व-रथ को तैयार कराया । यावत् घोड़ों, हाथियों और बहुत से सुभटों के समूह के साथ साकेत नगर से निकला । जहाँ विदेह जनपद था और जहाँ मिथिला राजधानी थी, वहाँ जाने के लिए प्रस्थान किया -
[८७] उस काल और उस समय में अंग नामक जनपद था । चम्पा नगरी थी । चन्द्रच्छाय अंगराज-अंग देश का राजा था । उस चम्पानगरी में अर्हन्नक प्रभृति बहुत-से