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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
ने धर्म कहा-महाबल राजा को धर्म श्रवण करके वैराग्य उत्पन्न हुआ । विशेष यह कि राजा ने कहा- 'हे देवानुप्रिय ! मैं अपने छहों बालमित्रों से पूछ लेता हूँ और बलभद्र कुमार को राज्य पर स्थापित कर देता हूँ, फिर दीक्षा अंगीकार करूँगा ।' यावत् इस प्रकार कहकर उसने छहों बालमित्रों से पूछा । तब वे छहों बाल-मित्र महाबल के राजा से कहने लगा-देवानुप्रिय ! यदि तुम प्रव्रजित होते हो तो हमारे लिए अन्य कौन-सा आधार हैं ? यावत् अथवा आलम्बन है, हम भी दीक्षित होते है । तत्पश्चात् महाबल राजा ने उन छहों बालमित्रों से कहा-देवानुप्रियो ! यदि तुम मेरे साथ प्रव्रजित होते हो तो तुम जाओ और अपने-अपने ज्येष्ठ पुत्रको अपने-अपने राज्य पर प्रतिष्ठित करो और फिर हजार पुरुषों द्वारा वहन करने योग्य शिविकाओं पर आरूढ़ होकर यहाँ प्रकट होओ ।' तब छहों बालमित्र गये और अपने-अपने ज्येष्ठ पुत्रों का राज्यासीन करके यावत् महाबल राजा के समीप आ गये ।
तब महाबल राजा ने छहों बालमित्रों को आया देखा । वह हर्षित और संतुष्ठ हुआ। उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा-'देवानुप्रियो ! जाओ और बलभद्र कुमार का महान् राज्याभिषेक से अभिषेक करो ।' यह आदेश सुनकर उन्होंने उसी प्रकार किया यावत् बलभद्रकुमार का अभिषेक किया । महाबल राजा ने बलभद्र कुमार से, जो अब राजा हो गया था,दीक्षा की आज्ञा ली । फिर महाबल अचल आदि छहों बालमित्रों के साथ हजार पुरुषों द्वारा वहन करने योग्य शिविका पर आरूढ़ होकर, वीतशोका नगरी के बीचोंबीच होकर जहाँ इन्द्रकुम्भ उद्यान था और जहाँ स्थविर भगवन्त थे, वहां आये । उन्होंने भी स्वयं ही पंचमुष्टिक लोच किया । यावत् दीक्षित हुए । ग्यारह अंगों का अध्ययन करके, बहुत से उपवास, बेला, तेला आदि तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे।
तत्पश्चात् वे महाबल आदि सातों अनगार किसी समय इकट्ठे हुए । उस समय उनमें परस्पर इस प्रकार बातचीत हुई- 'हे देवानुप्रियो ! हम लोगों में से एक जिस तप को अंगीकार करके विचरे हम सब को एक साथ वही तपःक्रिया ग्रहण करके विचरना उचित है ।' सबने यह बात अंगीकार की । अंगीकार करके अनेक चतुर्थभक्त, यावत् तपस्या तरके हुए विचरने लगे । तत्पश्चात् उन महाबल अनगार ने इस कारण से स्त्रीनामगोत्र कर्मका उपार्जन कियायदि वे महाबल को छोड़ कर शेष छह अनगार चतुर्थभक्त ग्रहण करके विचरते, तो महाबल अनगार षष्ठभक्त ग्रहण करके विचरते । अगर महाबल के सिवाय छह अनगार षष्ठभक्त अंगीकार करके विचरते तो महाबल अनगार अष्टभक्त ग्रहण करके विचरते । इस प्रकार अपने साथी मुनियों से छिपा कर-कपट करके महाबल अधिक तप करते थे ।
[७७] अरिहंत, सिद्ध, प्रवचन, गुरु, स्थविर, बहुश्रुत, तपस्वी-इन सातों के प्रति वत्सलता धारण करना, बारंबार ज्ञान का उपयोग करना-तथा
[७८] दर्शन, विनय, आवश्यक शीलव्रतका निरतिचार पालन करना, क्षणलव अर्थात् ध्यान सेवन, तप करना, त्याग-तथा
[७९] नया-नया ज्ञान ग्रहण करना, समाधि, वैयावृत्य, श्रुतभक्ति और प्रवचन प्रभावना इस बीस कारणों से जीव तीर्थकरत्व की प्राप्ति करता है ।
[८०] तत्पश्चात् वे महाबल आदि सातों अनगार एक मास की पहली भिक्षु-प्रतिमा अंगीकार करके विचरने लगे । यावत् बारहवीं एकरात्रिकी भिक्षु-प्रतिमा अंगीकार करके विचरने