________________
आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
और संचिट्ठणाकाल कृष्णलेश्याशतक समान । शेष पूर्ववत् । 'भगवन् ! यह इसी प्रकार है ० ' । कृष्णलेश्या-सम्बन्धी शतक अनुसार छहों लेश्या -सम्बन्धी छह शतक कहने चाहिए । विशेष- संचिट्ठणाकाल और स्थिति का कथन औधिक शतक के समान है, किन्तु शुक्ललेश्यी का उत्कृष्ट संचिट्ठणाकाल अन्तमुहूर्त अधिक इकतीस सागरोपम होता है और स्थिति भी पूर्वोक्त ही होती है, किन्तु उत्कृष्ट और अन्तमुहूर्त अधिक नहीं कहना चाहिए । इनमें सर्वत्र सम्यक्त्व और ज्ञान नहीं होता तथा इनमें विरति, विरताविरति तथा अनुत्तरविमानोत्पत्ति नहीं होती । इसके पश्चात्-भगवन् ! सभी प्राण यावत् सत्त्व यहाँ पहले उत्पन्न हुए हैं । गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । 'हे भगवन् ! यह इस प्रकार है०' । इस प्रकार ये सात अभवसद्धिकमहायुग्म शतक होते हैं । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' । इस प्रकार ये इक्कीस महायुग्मशतक संज्ञीपंचेन्द्रिय के हुए । सभी मिला कर महायुग्म-सम्बन्धी ८१ शतक सम्पूर्ण हुए । शतक - ४० का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
४८
शतक- ४१
उद्देशक - १
[१०६८] भगवन् ! राशियुग्म कितने कहे गए हैं ? गौतम ! चार, यथा - कृतयुग्म, यावत् कल्यो । भगवन् ! राशियुग्म चार कहे हैं, ऐसा किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! जिस राशि में चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में ४ शेष रहें, उस राशियुग्म को कृतयुग्म कहते हैं, यावत् जिस राशि में से चार-चार अपहार करते हुए अन्त में एक शेष रहे, उस राशियुग्म को 'कल्योज' कहते हैं । इसी कारण से हे गौतम! यावत् कल्योज कहलाता है। भगवन् ! राशियुग्म- कृतयुग्मरूप नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इनका उपपात व्युत्क्रान्तिपद अनुसा जानना । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! चार, आठ, बारह, सोलह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! वे जीव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ? गौतम ! वे जीव सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी । जो सान्तर उत्पन्न होते हैं, वे जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय का अन्तर करके उत्पन्न होते हैं । जो निरन्तर उत्पन्न होते हैं, वे जघन्य दो समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय तक निरन्तर प्रतिसमय अविरहितरूप से उत्पन्न होते हैं ।
भगवन् ! वे जीव जिस समय कृतयुग्मराशिरूप होते हैं, क्या उसी समय त्र्योजराशिरूप होते हैं और जिस समय त्र्योजराशियुक्त होते हैं, उसी समय कृतयुग्मराशिरूप होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं । भगवन् ! जिस समय वे जीव कृतयुग्मरूप होते हैं, क्या उस समय द्वापरयुग्मरूप होते हैं तथा जिस समय वे द्वापरयुग्मरूप होते हैं, उसी समय कृतयुग्मरूप होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! जिस समय वे कृतयुग्म होते हैं, क्या उस समय कल्योज होते हैं तथा जिस समय कल्योज होते हैं, उस समय कृतयुग्मराशि होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
भगवन् ! वे जीव कैसे उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला इत्यादि उपपातशतक अनुसार वे आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से नहीं । भगवन् ! वे जीव आत्म- यश से उत्पन्न होते हैं अथवा आत्मअयश से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे आत्म- अयश